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Lyrics: [Chorus] विघ्नेशं नमामि, वरदं विनायकम्। अभयप्रदं नित्यं, शरणं गणनायकम्। मङ्गलप्रवर्तकं, गजवदनं भजे॥ [Verse 1] आरम्भकृत्सु सर्वेषु त्वदनुग्रहतो ध्रुवम्। सिद्धिर्भवति सत्कर्म, नश्यन्ति विघ्नसङ्घशः॥ [Verse 2] त्वं भयापह विश्वात्मन्, शरणागतवत्सल। अभयं देहि भक्तेभ्यः, त्राहि त्राहि विनायक॥ [Verse 3] एकदन्त महाशूर, शूर्पकर्ण दयानिधे। लम्बोदर प्रसन्नेन्द्र, पाहि नः परितः सततम्॥ [Verse 4] सिद्धिविनायक प्रभो, ऋद्धिदः करुणाकर। भक्तजनमनःकान्त, विघ्नजालं निवारय॥ [Verse 5] गजानन गजेन्द्राभ, सुमुखानन सुन्दर। भवभीतिं खण्डय त्वं, दृढं देहि धृतिं च नः॥ [Verse 6] दूर्वाङ्कुरप्रिय त्वं, मोदकप्रिय दीनवत्सल। कुरु कृपासुधासिक्तं, हृदि मे वर्तते श्रुतिः॥ [Verse 7] गणाधिप भवानाग्रे, मङ्गलं प्रतिपादय। आविर्भव प्रपन्नानां, पालय पालय चित्ततः॥ [Verse 8] उमासुत शिवप्राण, हरहेरम्ब शोभन। रक्ष रक्ष महायोगिन्, शमयाशु विपत्तयः॥ [Verse 9] अभयहस्त विस्तीर्णः, करुणावलोकनः शशी। भक्तचेतसि संभाव्य, भङ्क्तुं शोकभयं क्षमः॥ [Verse 10] प्रापदं परिमोचय त्वं, दारिद्र्यं च विनाशय। अल्पबुद्धेर्ममापि त्वं, बुद्धिं देहि सुवर्तिनीम्॥ [Verse 11] ऋद्धिसिद्धिपतिं देवं, नमामि भक्तवत्सलम्। सत्त्वदीप्तिं वितर नः, धैर्यं देहि दयानिधे॥ [Verse 12] विघ्नव्यूहविनाशार्थं, स्मरामि त्वामहर्निशम्। नाम ते श्रवणामृतं, शमयेत् हृदि दाहकम्॥ [Verse 13] मूषकवाहन प्रभो, नागयज्ञोपवीतिन। कुण्डलोज्ज्वल ग्रीवान्, हास्यचन्द्रशिखाञ्जलिः॥ [Verse 14] वक्रतुण्ड दयाघूर्ण, पङ्कजपत्मगन्धभृत्। दुरितानि दह दह, वज्रनेत्रभृशारुण॥ [Verse 15] यत्र यत्र भवद्यशो, तत्र तत्र सुवेलया। जीवनस्य पदे पदे, वर्तते विघ्ननाशनम्॥ [Verse 16] नवशक्तिमयो देव, नवसिद्धिद एव च। नवदुर्गमनाशाय, नवमङ्गलदायक॥ [Verse 17] आशां पुष्णुषि चित्तेषु, हर्षपुष्पैः समन्वित। भक्तिभावं सुदृढय, निश्चलं कुरु नः प्रभो॥ [Verse 18] कर्मारम्भे पदाम्भोजं, ध्यायामो विनयान्विताः। त्वत्प्रसादान्महाखेटं, तर्तुं शक्ष्यामहे ध्रुवम्॥ [Verse 19] काले काले नमस्तुभ्यं, दुष्कृतक्षयकारिणे। सत्कृतौ प्रगतिर्भूयात्, त्वद्भक्तेः परिपोषक॥ [Verse 20] दैन्यदौर्बल्यशङ्का, दूरतस्तु पलायताम्। त्वन्महिम्ना महावीर, निर्भयाः स्याम सर्वदा॥ [Verse 21] विनयेन वदामो वयं, विघ्नराज नमोऽस्तु ते। कार्यसिद्धिं प्रदेहि नः, सौख्यवृद्धिं च शाश्वतीम्॥ [Verse 22] स्मितमण्डित वक्त्रेन्द्र, कारुण्यसलिलोदय। आनन्दं वितनोतु त्वं, प्रेमरूपं निरन्तरम्॥ इति गणेश-आरत्याः DISCLAIMER: This devotional composition is created using AI-generated lyrics and vocals, intended purely for spiritual inspiration. It is not sourced from scriptures, and minor pronunciation variations may occur due to AI rendering. With heartfelt reverence, this offering is humbly dedicated to the deity and to all seekers of devotion.