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सातूं आठू गौरा दी कुमाऊनी लोक प्रिय पर्व | jhodaChachri | Bhanda Didihat Uttrakhand | GoraMataAagman Hi friends! Welcome back to my channel Pahadi Soul hema Please subscribe, like, share and comment my channel • सातूं आठू गौरा दी कुमाऊनी लोक प्रिय पर्व |... 🌸 सातूं-आठू गौरा पर्व : कुमाऊँ की लोक-आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक विरासत 🌸 उत्तराखंड देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है और यहाँ हर पर्व, हर त्यौहार अपने आप में एक गहरी आस्था और लोक-संस्कृति को समेटे होता है। इन्हीं पर्वों में से एक है – सातूं-आठू गौरा पर्व। यह पर्व विशेष रूप से कुमाऊँ क्षेत्र में बड़ी श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद (भादो) माह की सप्तमी और अष्टमी को मनाया जाता है। सातवें दिन जिसे सातूं कहते हैं, और आठवें दिन जिसे आठू कहते हैं, गौरा माता अपने मायके आती हैं। यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और लोकगीतों-नृत्यों के कारण भी बेहद लोकप्रिय है। 🌿 गौरा माता का आगमन (Gora Mata Aagman) सातूं-आठू के अवसर पर गाँव-गाँव में गौरा माता की पूजा होती है। मान्यता है कि इस दिन गौरा माता अपने मायके पधारती हैं और उनके साथ शिवजी का भी स्वरूप झांकी के रूप में सजाया जाता है। गाँव की महिलाएँ गीत गाते हुए गौरा को घर-घर लाती हैं। जौ (ज्वार/धान) की बालियों से माता का स्वरूप बनाया जाता है। मिट्टी से बनी मूर्तियों को खूबसूरती से सजाया जाता है। धूप, दीप, फूल और ऋतु फल अर्पित कर माता का स्वागत किया जाता है। यही गौरा का आगमन कहलाता है। यह पर्व विवाहित स्त्रियों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसमें वे अपने पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं। 🎶 लोकनृत्य और लोकगीत – झोड़ा और छपेली सातूं-आठू पर्व की असली रौनक है झोड़ा-छपेली और चांचरी। महिलाएँ व पुरुष पारंपरिक वेशभूषा में गोल घेरे बनाकर झोड़ा नृत्य करते हैं। लोकगीतों में गौरा-शिव के विवाह प्रसंग, उनकी लीलाएँ और पर्व की महिमा गाई जाती है। "छपेली" में युवक-युवतियाँ आपसी संवाद के रूप में गीत गाते और नृत्य करते हैं। ढोल, दमुआ, नगाड़ा और रणसिंघा की धुनों पर पूरा गाँव गूंज उठता है। यही झोड़ा-छपेली कुमाऊँ की पहचान है और इस पर्व को और भी आकर्षक बनाती है। 🌸 धार्मिक महत्व गौरा पर्व को महिलाओं का पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व नारी शक्ति और शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक है। मान्यता है कि गौरा माता (पार्वती) ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए यह पर्व मनाती हैं। कन्याएँ अच्छे पति की प्राप्ति के लिए गौरा माता की पूजा करती हैं। 🌍 सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है बल्कि यह समाज को एकजुट करने का माध्यम भी है। गाँव-गाँव में सामूहिक रूप से पूजा और नृत्य होता है। रिश्तेदार और पड़ोसी मिलकर पर्व मनाते हैं, जिससे आपसी भाईचारा और प्रेम बढ़ता है। इस अवसर पर मेलों का आयोजन भी किया जाता है, जहाँ लोग दूर-दूर से शामिल होने आते हैं 🍲 पारंपरिक व्यंजन किसी भी पर्व की खासियत उसका भोजन होता है। सातूं-आठू पर्व में घरों में पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं – सातूं (भुने हुए अनाज को पीसकर बनाया गया प्रसाद) मंडुवा, झंगोरा, भट्ट की दाल आलू के गुटके, भांग की चटनी घी में बने मिठाई और पूरी यही व्यंजन पर्व की पवित्रता और स्वाद दोनों को दर्शाते हैं। 🏔️ भांडा, दिदीहाट (Banda Didihat) और लोक परंपराएँ पिथौरागढ़ जिले के भांडा (दिदीहाट) क्षेत्र में सातूं-आठू पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहाँ की लोक परंपराएँ, झोड़ा-चांचरी, गीत और सामूहिक उत्सव कुमाऊँ की संस्कृति को जीवंत बनाए रखते हैं। ✨ आधुनिक समय में पर्व की प्रासंगिकता आज जब लोग गाँव छोड़कर शहरों की ओर जा रहे हैं, तब भी सातूं-आठू पर्व अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर लोग अपने गाँव की झलक दिखाकर संस्कृति को जीवित रख रहे हैं। पर्व के जरिए नई पीढ़ी अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़ रही है। 🌺 निष्कर्ष सातूं-आठू गौरा पर्व केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि उत्तराखंड की आत्मा है। यह पर्व हमें न केवल भक्ति और आस्था का महत्व बताता है बल्कि समाज में एकता, भाईचारा और संस्कृति को भी मजबूती देता है। #SatuAthu #GoraMata #JhodaChachri #PahadiCulture #UttarakhandFestival #Didihat #Bhanda #Pithoragarh #KumaoniLokgeet #KumaoniSanskriti #KumaoniParv #TraditionalDance #SatuAthu2025 Follow Pahadi Soul Hema Keep_supporting Keep_sharing Keep_loving Ajab_gazab_sockhand_Pahadi_Soul_Hema THANKS FOR WATCHING..#Pahadi_Soul_Hema