У нас вы можете посмотреть бесплатно महाराजा सूरजमल का इतिहास (दिल्ली युद्ध 1) हरिराम गुर्जर ढोला लोकगीत Maharaj Surajmal History или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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©SAV 6590_TrLive SUBSCRIBE : https://goo.gl/ISXUxf Dhola Lokgeet - Bharatpur Itihas (Maharaja Surajmal Ka Delhi Yudh 1) Artist - Vinod, Rakesh, Sudharth, Devvati, Yogita, Namrta Singer - Hariram Gurjar Music - Hansraj & Party Writer - Prithvi Singh Bedhadak Director - Bablu Anuj Producer - Shubham Audio Video DIGITAL PARTNER - Vianet Media Pvt. Ltd Presented By - Rathore Cassettes Official Whatsapp Number ✆ - (9818995706) Music Label - Rathore Cassettes Official Copyrights - Shubham Audio/Video Mail Us ✉ - [email protected] Contact Company (Person) :- Sheetal Kumar (9717072059) CONTACT FOR RELEASE YOUR AUDIO/VIDEO .... { 09810082706, 9717072059 } महाराजा सूरजमल (1707-1763) भरतपुर राज्य के दूरदर्शी महाराजा थे। उनके पिता बदन सिंह ने डीग को सबसे पहले अपनी राजधानी बनाया और बाद में सूरजमल ने भरतपुर शहर की स्थापना की। सूरजमल ने सन् १७३३ में खेमकरण सोगरिया की फतहगढी पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त कर यहाँ १७४३ में भरतपुर नगर की नींव रखी जो सन् १७५३ से उनका निवास हुआ। जयपुर राज के जागीरदार थे। 14 जनवरी 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों और अहमदशाह अब्दाली के बीच हुई। मराठों के एक लाख सैनिकों में से आधे से ज्यादा मारे गए। मराठों के पास न तो पूरा राशन था और न ही इस इलाके का उन्हें भेद था, कई-कई दिन के भूखे सैनिक क्या युद्ध करते ? अगर सदाशिव राव महाराजा सूरजमल से छोटी-सी बात पर तकरार न करके उसे भी इस जंग में साझीदार बनाता, तो आज भारत की तस्वीर और ही होती| महाराजा सूरजमल ने फिर भी दोस्ती का हक अदा किया। तीस-चालीस हजार मराठे जंग के बाद जब वापस जाने लगे तो सूरजमल के इलाके में पहुंचते-पहुंचते उनका बुरा हाल हो गया था। जख्मी हालत में, भूखे-प्यासे वे सब मरने के कगार पर थे और ऊपर से भयंकर सर्दी में भी मरे, आधों के पास तो ऊनी कपड़े भी नहीं थे। दस दिन तक सूरजमल नें उन्हें भरतपुर में रक्खा, उनकी दवा-दारू करवाई और भोजन और कपड़े का इंतजाम किया। महारानी किशोरी ने भी जनता से अपील करके अनाज आदि इक्ट्ठा किया। सुना है कि कोई बीस लाख रुपये उनकी सेवा-पानी में खर्च हुए। जाते हुए हर आदमी को एक रुपया, एक सेर अनाज और कुछ कपड़े आदि भी दिये ताकि रास्ते का खर्च निकाल सकें। कुछ मराठे सैनिक लड़ाई से पहले अपने परिवार को भी लाए थे और उन्हें हरयाणा के गांवों में छोड़ गए थे। उनकी मौत के बात उनकी विधवाएं वापस नहीं गईं। बाद में वे परिवार हरयाणा की संस्कृति में रम गए। महाराष्ट्र में 'डांगे' भी जाटवंश के ही बताये जाते हैं और हरयाणा में 'दांगी' भी उन्हीं की शाखा है।