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है कथा वैराग्य की, रजोहरण के प्यास की जाना धर्म का तुमने सार, गुरु कृपा का मिला उपहार लगन लगी है वैराग्य की.... है कथा वैराग्य की, रजोहरण के प्यास की जाना धर्म का तुमने सार, गुरु कृपा का मिला उपहार लगन लगी है वैराग्य की.... परिवार का प्यार है, वैभव अपरंपार है फ़िर क्यू छोड़ रहे संसार है... शाश्वत सुख को पाना है, कर्मों को अपने खपाना है गुरु चरणों में हमको जाना है आत्मा में शक्ति अनंत है, गुरु राम शासन जयवंत है कषायों का करना अंत है पहला राग है संयम, अंतिम सांस तक संयम संयम ही प्राण आधार है संयम वरु...., निर्ग्रन्थ बनु.... है कथा वैराग्य की, "प्रवीण", "प्रीति" और "ताश्वी" की दिव्य है, नव्य है, उत्सव ये भव्य है अनुमोदन है दक परिवार की प्रवीण जी का भाग्य खिला, प्रीति जी का साथ मिला गुरु आज्ञा इनको स्वीकार है छोटी सी उमर तेरी, नाजो से तू पली ताश्वी जी का सत्कार है संयम वरु...., निर्ग्रन्थ बनु.... संयम वरु...., निर्ग्रन्थ बनु.... संयम वरु...., निर्ग्रन्थ बनू.... संयम वरु...., निर्ग्रन्थ बनु....