У нас вы можете посмотреть бесплатно कैलाश पर्वत के 72 जैन मंदिरों का रहस्य! ब्र.लामचीदास गोलालारे की अद्भुत श्री कैलाश यात्रा или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
#jaintirth #jainism #kailashparvat इतिहास और पुराण ग्रंथ इस बात का जीवंत साक्ष्य है कि महानतम व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति अपने जीवन का अमूल्य समय अपने जीवन परिचय को लिखने लिखवाने में नहीं गवाते हैं। जिज्ञासु जन उनके कार्यों से उनका जीवन परिचय खोज निकालते है । भगवान महावीर के शासन काल में ब्रह्मचारी लामचीदास ऐसे एक मात्र ज्ञात श्रावक है जिन्होंने कैलाश पर्वत के जिनालयों के साक्षात दर्शन किए है। ब्रह्मचारी लामचीदास जी ने अपनी कुल परम्परा को गौरान्वित करते हुए महानतम दुर्लभ कार्य करते हुए अपनी दुर्लभ मनुष्य पर्याय को धन्य किया । ब्रह्मचारी जी के जीवन परिचय के बारे में कुछ विशेष उल्लेख लिखित अथवा मौखिक नहीं मिलता। 104 पेज के यात्रा वृतान्त पत्र में से उपलब्ध कुछ पेज गोलालारीय दिगम्बर जैन समाज ललितपुर ने 'श्री कैलाश यात्रा' के नाम से एक 16 पेज की पुस्तक में प्रकाशित किए थे। पुस्तक के तीसरे संस्करण के आधार पर उनके परिचय को सहेजने का एक प्रयास किया गया है। ब्रह्मचारी अदम्य साहसी, निडर, अद्भुत क्षमता वाले, जिनेन्द्र देव और जिनवाणी पर अटल श्रद्धान रखने वाले, अपनी महान संकल्प शक्ति से देवों को भी अपने पक्ष में करने वाले महान पुरुष थे। इनका जन्म भूटान देश के गिरिमध्य नगर यानि गिरिजम नगर में सूर्यवंशी गोलालारे जैन परिवार में हुआ था। वे भरे पूरे कुटुम्ब परिवार, इष्ट मित्रों को छोड़कर कैलाश के दर्शनों की अभिलाषा से संवत 1806 यानि सन् 1774 में अपना गृह नगर त्याग कर भारत, ब्रह्मा, चीन, तिब्बत की यात्रा करते हुए मानसरोवर झील के रास्ते से होते हुए कैलाश पर्वत पहुँचे । इसका उल्लेख ब्रह्मचारी लामचीदासजी ने अपने यात्रावृतान्त में किया है। ब्रह्मचारी लामचीदासजी ने 7330 कोस चलकर गिरिराज के अष्टापद कैलाश के दर्शन किये। अष्टापद कैलाश के जिनालयों की वंदना के पश्चात 2564 कोस चलकर उन्होंने अपने जन्मस्थान भूटान देश के गिरिमध्यनगर में 18 वर्ष पश्चात प्रवेश किया। इस प्रकार कुल 9894 कोस की यात्रा का उल्लेख है। इस संपूर्ण यात्रा वृतान्त के उल्लेख में लामचीदास जी ने मार्ग में अनेक जैन धर्मावलम्बियों के जिनालयों का वर्णन एवं जैन जातियों का भी वर्णन किया। भूटान से भारत, म्यांमार, चीन, तिब्बत में लाखो जिनालय एवं अनेक प्रकार के जिन पूजक गृहस्थों की मान्यता वाली मूर्तियों के दर्शन उन्होने किये । विशाल जिनालय विशाल प्रतिमाएं हजारो छोटे-छोटे जिनालयों के भी उन्होंने दर्शन किये। गिरिमध्यनगर की विभिन्न धर्मशालाओं में एक वर्ष तक रहने के पश्चात उन्होंने सगरगंग नाले पर लिये गए संकल्प को पूर्ण करने के लिए मानव से महामानव बनने के लिये अपनी यात्रा प्रारंभ की। इस प्रकार उन्होंने अपने जन्मस्थान को हमेशा के लिए त्याग दिया । सर्वप्रथम उन्होंने 20 तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि अनादि निधन गिरिराज परम पवित्रधाम सम्मेद शिखरजी के दर्शन किए पश्चात चम्पापुर, पावापुर, राजगृही कलजीवन, सोनागिरीजी, रेवातट, मक्सी, पार्श्वनाथ, विंध्याचल बड़वानीजी, सतपुरीगिरी, मांगीतुंगीजी, सांद्रिगिरी, गजपंथाजी, गिरनारजी, भावनगर गोम्मटस्वामी, तिलंगदेश, द्राविण देश कर्नाटक देश के जिन मंदिरों की वंदना करते हुए जैन बद्री मूड ब्रदी आ गए। इस प्रकार वे कुल 22 वर्षों तक सभी निर्वाण भूमि अतिशय क्षेत्र, सिद्धक्षेत्र और देश विदेश के अनेक जिनालयों की वंदना करते रहे । महाव्रतों को अड्गीकार करने के पूर्व ब्रह्मचारी लामचीदासजी ने अपने यात्रा वृतान्त को 104 पन्नों में हिन्दी में लिपिबद्ध करवाकर कौशल, कुरूजांगल जैसे अनेक देशों के लिये प्रेषित करवाया। उन्होंने अपने पत्र के अंत में एक नोट लिखा- श्रावक सर्वजनों संशय न करना, श्रावक जो जाय सो अपनी सम्पक्त्व से दर्शन करो , जाने में भ्रम न करना जरूर दर्शन होएंगे । जिन धर्म दोय प्रकार है निश्चय और व्यवहार । सो निग्रंथन मुनिराज निश्चय है और व्यवहार ही जानने भगवान की वाणी सोई खिरी है सो पत्र गाथा निश्चय सत्य मानों । इनके यात्रा वृतान्त की विशेषता यह है कि इनके यात्रा स्थानों में जो भी, जैसा भी स्थान आया उसका उल्लेख अवश्य किया; चाहे वह जैन मंदिरों का उल्लेख हो । चाहे होवा नगर की बाहुबली भगवान की #बौद्ध मतावलम्बियों द्वारा पूजे जाने का उल्लेख है। चाहे गौतम बुद्ध के नाम से प्रचलित गौतम सन् का उल्लेख हो, चाहे तिब्बत में पाए जाने वाले हजारों लाखों जैन मंदिरों का वर्णन हो, चाहे कैलाश पर्वत पर भरत चक्रवर्ती द्वारा बनवाए गये 72 जिनालयों, जिनबिम्ब का उल्लेख हो, चाहे #कैलाशपर्वत एक हजार धनुष ऊंचे #रुद्रमहल के ध्वशावशेष का उल्लेख हो, चाहे #चीन के वैभव का उल्लेख। सब का बहुत सहजता से उल्लेख किया है। संपूर्ण यात्रा वृतान्त आग्रह रहित है ।