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"रणभेरी बजती है। लंका का मुख्य द्वार खुलता है। अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ रावण रथ पर सवार होकर अपने दुर्ग से बाहर निकलता है। जामवन्त राम से कहते हैं कि इतनी शीघ्र रावण का स्वयं युद्ध में आना आपकी विजय का प्रतीक है। रावण राम को सामने आने के लिये ललकारता है और कहता है कि युद्ध लम्बा खिंचने से दोनों ओर के निरपराध सैनिक मारे जा रहे हैं। वह सीधा राम से युद्ध करके आज किस्सा खत्म कर देना चाहता है। किन्तु सुग्रीव पहले रावण के सामने आ जाता है। रावण एक मुष्टिका प्रहार से सुग्रीव को मूर्च्छित कर देता है और फिर उसकी हत्या करने के लिये बाण चलाने वाला होता है कि लक्ष्मण अपने बाण से रावण का धनुष काट देते हैं। लक्ष्मण रावण को धिक्कारते हैं कि वो एक मूर्च्छित योद्धा का वध करना चाहता था। रावण कहता है कि असुर युद्ध नीतियों की परवाह नहीं करते, उनके लिये केवल जीत अर्थ रखती है। रावण विषबुझा बाण चलाकर लक्ष्मण को मूर्च्छित अवस्था में पहुँचा देता है। अंगद लक्ष्मण को युद्धभूमि से बाहर ले जाते हैं। क्रोधित हनुमान रावण के रथ पर चढ़कर उस पर प्रहार करते हैं लेकिन रावण हनुमान को रथ से नीचे गिरा देता है। राम वहाँ आकर रावण के बल की प्रशँसा करते हैं लेकिन खेद प्रकट करते हैं कि रावण अपने बल का उपयोग पापकर्मों में कर रहा है। रावण राम से अस्त्र शस्त्र की भाषा में बात करने की चुनौती देता है। राम रावण के बीच प्रथम युद्ध छिड़ जाता है। राम रावण के हर अस्त्र शस्त्र को काट देते हैं। जब शिव से वरदान में प्राप्त रावण की चन्द्रहास तलवार को राम अपने बाण से दो टुकड़ों में विभक्त कर देते हैं तब पहली बार रावण के चेहरे भय की रेखाएं साफ उभरती हैं। राम कहते हैं कि तुम असुरों की कोई युद्ध नीति नहीं होती लेकिन रघुवंशी युद्धधर्म का पालन करते हैं। युद्धधर्म कहता है कि शस्त्रहीन पर वार नहीं करना चाहिये, इसलिये राम रावण को जीवित किन्तु अपमानित करके छोड़ देते हैं और अगले दिन नये शस्त्र लेकर लड़ने आने को कहते हैं। रावण अपना टूटा रथ वहीं छोड़कर, टूटे अहंकार के साथ पैदल युद्धभूमि से वापस आता है। रावण अपने दूतों से सातों महाद्वीपों में रहने वाले राक्षसों और असुरों को लंका में एकत्रित होने का सन्देशा भिजवाता। सदैव रावण को सीता लौटाने का उपदेश देने वाले नाना माल्यवान के विचार भी बदल चुके हैं। वह रावण से कहता है कि अब युद्ध प्रारम्भ हो चुका है तो इसे पूरी वीरता से लड़ो। माल्यवान रावण को स्मरण कराता है कि उसके पास कुम्भकरण जैसा परम बलशाली भाई सोया पड़ा है तो वह दूसरे राक्षसों को बुलाने दूत क्यों भेज रहा है। रावण के चेहरे पर उत्साह उपजता है। वह कुम्भकरण को जगाने का आदेश देता है। त्रिजटा युद्ध के प्रथम दिन का हाल सीता को बताकर उन्हें प्रसन्न करती है। विशाल काया वाला कुम्भकरण अपने शयनकक्ष में सोया पड़ा है। सैनिक शोर मचाने वाले बड़े बड़े वाद्ययन्त्र लेकर उसे जगाने पहुँचते हैं। रामायण एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो इसी नाम के प्राचीन भारतीय संस्कृत महाकाव्य पर आधारित है। यह श्रृंखला मूल रूप से 1987 और 1988 के बीच दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी। इस श्रृंखला के निर्माण, लेखन और निर्देशन का श्रेय श्री रामानंद सागर को जाता है। यह श्रृंखला मुख्य रूप से वाल्मीकि रचित 'रामायण' और तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' पर आधारित है। इस धारावाहिक को रिकॉर्ड 82 प्रतिशत दर्शकों ने देखा था, जो किसी भी भारतीय टेलीविजन श्रृंखला के लिए एक कीर्तिमान है। निर्माता और निर्देशक - रामानंद सागर सहयोगी निर्देशक - आनंद सागर, मोती सागर कार्यकारी निर्माता - सुभाष सागर, प्रेम सागर मुख्य तकनीकी सलाहकार - ज्योति सागर पटकथा और संवाद - रामानंद सागर संगीत - रविंद्र जैन शीर्षक गीत - जयदेव अनुसंधान और अनुकूलन - फनी मजूमदार, विष्णु मेहरोत्रा संपादक - सुभाष सहगल कैमरामैन - अजीत नाइक प्रकाश - राम मडिक्कर साउंड रिकॉर्डिस्ट - श्रीपाद, ई रुद्र वीडियो रिकॉर्डिस्ट - शरद मुक्न्नवार In association with Divo - our YouTube Partner #Ramayan #RamanandSagar #ShriRam #MataSita #Hanuman #Lakshman #RamayanaEpisodes #Bhakti #Hindu #tvseries #RamBhajan #RamayanaStories #RamayanTVSeries #RamCharitManas #DevotionalSeries"