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MahaShivratri special Shiv Mahimna Stotra - शिव महिम्न स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित) shiv stuti 3 дня назад


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MahaShivratri special Shiv Mahimna Stotra - शिव महिम्न स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित) shiv stuti

MahaShivratri special Shiv Mahimna Stotra - शिव महिम्न स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)shiv stuti Shivratri special shiv Mahimna Stotra with hindi meaning शिवरात्रि में भोलेनाथ शंकर की सादगी का वर्णन करने से ‍शिव प्रसन्न होते हैं। शिव के इस महिम्न स्तोत्रम् में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है। इस महिम्न स्तोत्र के पीछे अनूठी और सुंदर कथा प्रचलित है। Monday Special Mahamrityunjay Mantra, Mahamrrtyunjay Mantra, Shiv Mantra, Mahadev Mantra, Mahamantra, Mahamrityunjay Mantra 108 times, Mahamrrtyunjay Mantra Live, Mahamrityunjay Mantra Vardan mahamrityunjay mantra maha mrityunjaya mantra mrityunjaya mantra महामृत्युंजय मंत्र mahamrityunjay jap om tryambakam yajamahe mahamrityunjaya mantra mahamrityunjay jaap mahamrityunjay mha marintu jay mantra shiv mantra मृत्युंजय मंत्र mhamitujay mantr mritunjay maha mantramahamrityunjay jap song महामृत्युंजय जाप mahamrutyunjay mantra marathi mrutyu akal mrityu hanuman chalisa mrityunjay jap maha mrityun jap mruthyunjaya maha mantra mahamantra om trayambakam mantra mahamurtya jaya mantram maha mrityunjaya jaap maha mrityunjaya akal mrityu mantra rog nashak mantra महामृत्युंजय mha mrutyu mantra mahamrityunjay ka jap maha mirtum jay mantra mahamrityunjay jaap song mahamrityunjaya mahamartujya mantra महामृत्यु मंत्र mrityunjay mahamantra mantra akal mrityu song mithun jay mantramahamrityunjaya paath महा मृत्युंजय मंत्र mahadev mantra mahamrityunjay mantra download mahamrityu mantra maha mrutyum jai mantra om trimbak yajamahe pushtivardhanam Maha Mrityunjay Mantra | Om Trayambakam Yajamahe | Shiv ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ #MahamrityunjayaMantra​#महाशिवरात्रि​ #महामृत्युंजयमंत्र​#MahamrityunjayMantra​ #महामृत्युंजय_मंत्र​ #Mahamrityunjay_Mantra​ Mahamrityunjay Mantra 108 Times #Vardan​ #shivtandavstotram​ #शिवतांडवस्तोत्रम​ #शिवस्तुति​ प्रस्तुत है कथा एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था। वो परम शिव भक्त था। उसने एक अद्भुत सुंदर बाग का निर्माण करवाया। जिसमें विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे। प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे। फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहे थे। उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया। मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया। अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए। फिर क्या हुआ बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्येक दिन पुष्प की चोरी करने लगा। इस रहस्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे। पुष्पदंत अपनी दिव्य शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहे। राजा ने निकाला समाधान राजा चित्ररथ ने एक अनोखा समाधान निकाला। उन्होंने शिव को अर्पित पुष्प एवं विल्व पत्र बाग में बिछा दिया। राजा के उपाय से अनजान पुष्पदंत ने उन पुष्पों को अपने पैरो से कुचल दिया। इससे पुष्पदंत की दिव्य शक्तिओं का क्षय हो गया। पुष्पदंत स्वयं भी शिव भक्त था। अपनी गलती का बोध होने पर उसने इस परम स्तोत्र के रचना की जिससे प्रसन्न हो महादेव ने उसकी भूल को क्षमा कर पुष्पदंत के दिव्य स्वरूप को पुनः प्रदान किया। आगे पढ़ें अर्थ सहित शिव महिम्न स्तोत्रम् :- महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन् ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः हे हर !!! आप प्राणी मात्र के कष्टों को हराने वाले हैं। मैं इस स्तोत्र द्वारा आपकी वंदना कर रहा हूं जो कदाचित आपके वंदना के योग्य न भी हो पर हे महादेव स्वयं ब्रह्मा और अन्य देवगण भी आपके चरित्र की पूर्ण गुणगान करने में सक्षम नहीं हैं। जिस प्रकार एक पक्षी अपनी क्षमता के अनुसार ही आसमान में उड़ान भर सकता है उसी प्रकार मैं भी अपनी यथाशक्ति आपकी आराधना करता हूं। अतीतः पंथानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि स कस्य स्तोत्रव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः हे शिव !!! आपकी व्याख्या न तो मन, ना ही वचन द्वारा ही संभव है। आपके सन्दर्भ में वेद भी अचंभित हैं तथा नेति नेति का प्रयोग करते हैं अर्थात यह भी नहीं और वो भी नहीं... आपका संपूर्ण गुणगान भला कौन कर सकता है? यह जानते हुए भी कि आप आदि व अंत रहित हैं परमात्मा का गुणगान कठिन है मैं आपकी वंदना करता हूं। मधुस्फीता वाचः परमममृतं निर्मितवतः तव ब्रह्मन् किं वागपि सुरगुरोर्विस्मयपदम् मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवतः पुनामीत्यर्थेऽस्मिन् पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता हे वेद और भाषा के सृजक जब स्वयं देवगुरु बृहस्पति भी आपके स्वरूप की व्याख्या करने में असमर्थ हैं तो फिर मेरा कहना ही क्या? हे त्रिपुरारी, अपनी सीमित क्षमता का बोध होते हुए भी मैं इस विश्वास से इस स्तोत्र की रचना कर रहा हूं कि इससे मेरी वाणी शुद्ध होगी तथा मेरी बुद्धि का विकास होगा। हे शिव !!! मैं आपके वास्तविक स्वरुप को नहीं जानता। हे शिव आपके उस वास्तविक स्वरूप जिसे मैं नहीं जान सकता उसको नमस्कार है।

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