У нас вы можете посмотреть бесплатно |खैरलिंग महादेव का मंदिर| (मुँडेस्वर महादेव) Kherling Mahadev или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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खैरलिंग महादेव का मंदिर पौड़ी जिले के मुंडेस्वर नामक एक छोटे से कसबे में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थापित्त है| खैरलिंग महादेव का मंदिर जिसको मुँडेस्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। मण्डल मुख्यालय पौड़ी से लगभग 37 किमी दूर कल्जीखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत खैरालिंग महादेव समुद्रतल से 1600 मीटर की ऊंचाई पर एक रमणीक एवम सुरम्य पहाडी पर स्थित है। खैरालिंग महादेव को मुण्डनेश्वर महादेव भी कहा जाता है। इन्हें धवड़िया देवता के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि जिस पर्वत चोटी पर श्री खैरालिंग महादेव का मन्दिर स्थापित है वह मुण्ड (सिर) के आकार का उभरा हुआ है। तीन ओर से जो पर्वत श्रृखंलायें यहां आकर मिलती हैं वह घोड़े की पीठ के समान सम होकर चली हैं और उनके मिलन स्थल पर सिर के रुप की आकृति बन गई है जिसे मुण्डन डांडा भी कहा जाता है। और इसी के आधार पर इसे मुण्डनेश्वर भी कहा गया है। इस मन्दिर की स्थापना 1795 ईसवी में की गई थी। मन्दिर में स्थापित लिंग खैर के रंग का है अत: इसे खैरालिंग कहा जाता है। मान्यता है कि खैरालिंग के तीन भाई और भी हैं, ताड़केश्वर, एकेश्वर और विन्देश्वर (विनसर), इनकी एक बहन काली भी है जो कि खैरालिंग के साथ रहती है। वहीं खैरालिंग मन्दिर में काली का थान भी है। भगवान शिव कभी भी बलि नही लेते हैं लेकिन खैरालिंग मंदिर में बलि दी जाती है, इस संबन्ध में कहा जाता है कि खैरालिंग के साथ काली भी है इसी लिये यहां बलि दी जाती है। यहां प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास में मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुबलि दी जाती है। दो दिन के इस मेले में पहले दिन ध्वजा चढ़ाई जाती है, तथा दूसरे दिन बलि दी जाती है। खैरालिंग कौथीग मेले का अनुष्ठान मेले से 2 दिन पहले शुरू हो जाता है। 2 दिन तक रात को होने वाला यह अनुष्ठान अलौकिक होता है। वर्तमान समय में मन्दिर का जो स्वरूप उभर कर सामने आया है वह गढ़वाली वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। शैव के साथ शाक्त मतवलंबियों की समान रूप से सहभागिता बनी रहे इस उद्देश्य से भगवान शंकर के साथ शक्ति के रूप में मां काली की स्थापना की गई है। शिवालय में बैल नन्दी की सवारी करते भगवान शंकर की पत्थर की मूर्ति भी स्थापित की गई है। यहाँ पहूंचने का आसान रास्ता सड़क द्वारा है। पौड़ी से 37 किमी की दुरी पर है और कोटद्वार से लगभाग 105 किमी की दुरी पर है।