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"नीम करौली बाबा की कृपा: भक्तिन की बदल दी किस्मत | एक सच्ची घटना" उत्तराखंड की शांत वादियों में बसे एक साधारण से घर में रहने वाली एक भक्त महिला का जीवन बदल गया — सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने प्रेम और श्रद्धा से बाबा नीम करौली महाराज को रूखी-सूखी रोटियाँ और सादी सब्ज़ी अर्पित की। यह कहानी उस सत्य पर आधारित है जिसे नीम करौली बाबा बार-बार दोहराते थे — “ईश्वर को भोग नहीं, भाव चाहिए। प्रेम से दिया गया छोटा अर्पण, करोड़ों के भोगों से अधिक मूल्यवान होता है।” बात नैनीताल की है, जहाँ एक समय बाबा महाराज अपने भक्तों के साथ ठहरे हुए थे। एक भक्त परिवार, जिनके घर बाबा रुकते थे, उन्हें विशेष भोग तैयार कर रोज अर्पित करते थे। परिवार में बहू ने विशेष रूप से बाबा के लिए चाँदी की थाली और कटोरी में घी की पूरियाँ, मिठाइयाँ, सब्ज़ियाँ तैयार की थीं। परंतु जैसे ही थाल तैयार हुआ, उसी समय एक गरीब महिला भी वहाँ पहुँचीं। उनके पास अर्पित करने के लिए कुछ विशेष नहीं था बस साधारण रोटियाँ और सब्ज़ी। वे श्रद्धा से भरी थीं लेकिन संकोचवश अपना कटोरदान छुपा लिया। तभी बाबा ने बड़े ही सहज स्वर में पूछा, “क्या लाई है?” वह झेंप गईं और बोलीं —“कुछ नहीं महाराज।” बाबा मुस्कराए और बोले — “तुम देना क्यों नहीं चाहती? जो लाई हो, वो दो।” महिला ने काँपते हाथों से कटोरदान सामने रख दिया। बाबा ने तुरंत वह कटोरदान अपने पास रख लिया और कहा, “बस, यहीं रख दो।” यह देखकर वहाँ उपस्थित बाकी लोग चकित रह गए जहाँ एक ओर चाँदी की थाल में सजे महाभोग थे, वहीं बाबा ने उस सादी रोटी-सब्ज़ी को ग्रहण किया, महिला संकोच और भावुकता में डूब गईं। वे जानती थीं कि उनके पास भोग योग्य कुछ नहीं था, पर बाबा ने उनकी सादगी, उनका प्रेम, और भावपूर्ण अर्पण को पहचाना। बाबा ने अपने थाल से कुछ दूर हटकर उनकी रोटी-सब्ज़ी लेना शुरू किया और कहा —“मुझे यही प्रिय है।” सबके सामने उनकी आंखें भर आईं। उन्होंने सिर झुका लिया। पर अंदर ही अंदर उनका मन भर गया “मेरा साधारण अर्पण बाबा को स्वीकार हुआ!” उस भाव से भरे क्षण के बाद, बाबा ने अपने करुणामय स्वर में कहा: “जाओ, अब तुम्हारे घर में किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी!!” यह वाक्य केवल आशीर्वाद नहीं था — यह ईश्वर की स्वीकृति थी। जिसने प्रेम से, बिना दिखावे के, बाबा को जो कुछ अर्पित किया, उसे बाबा ने न केवल ग्रहण किया, बल्कि पूरे प्रेम से स्वीकार कर अनंत कृपा दी। नीम करौली बाबा की यह लीला हमें यह सिखाती है कि प्रेम और भक्ति से दिया गया अर्पण ही सबसे मूल्यवान होता है।