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'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकों की शृंखला आज भी जारी है. आज वर्ष 2025 की 'कविता' श्रेणी की दस श्रेष्ठ पुस्तकों के बारे जानिए, जो कविता प्रेमियों के दिल में बना पाईं जगह. साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' की सबसे अच्छी 'कविता' पुस्तकें हैं: *** बिना कलिंग विजय के | यतीन्द्र मिश्र आओ एक बार फिर आओ न मां हमारे घर नीम के पेड़ पर फूल बन महको एक बार फिर आओ हमारी अमराई में अपनी गोद का झूला डालने आओ मां... यतीन्द्र मिश्र ने इस कविता-संग्रह की कविताओं में एक समृद्ध साझा सांस्कृतिक उत्तराधिकार तो है ही, इनकी सजलता, सरसता और स्पर्शी सकारात्मकता पाठक मन को आविष्ट करती है. प्रकाशक: वाणी प्रकाशन *** नमी बची रहती है आखिरी तल में | राजीव कुमार मैं रो नहीं सका कभी मां ने बचपन से दिमाग में यह बिठा दिया मर्द नहीं रोते चाहे कितना भी उफन गया हो समन्दर और फटते रहे हों बादल एक लड़के का रोक लेना आंसू आंखों के भीतरी तल में उसे मर्द बनाता है... यह संग्रह संवेदना की उन दो दिशाओं को प्रस्तावित करता है, जहां मनुष्य का आत्म और उसका परिवेश जीवन की बहुस्तरीयता को प्रस्तावित करते हैं. कवि की भाषा तत्सम, तद्भव, उर्दू, फारसी के सहज प्रवाह से युक्त है. प्रकाशक: सेतु प्रकाशन *** चाय घर से... | विवेक कुमार मिश्र चाय न मिले तो एक तरह की बेचैनी-सी बनी रहती है लगता है कि कुछ छूट गया है चाय की जगह बहुत कुछ हो तरह तरह के व्यंजन हो या पेय पदार्थ हों पर कोई चाय की जगह नहीं ले सकता... कवि चाय के बहाने से सामाजिक यथार्थ की प्रतिपुष्टि करता है और बताता है कि 'चय्याशों' का अपना एक समानांतर लोकतंत्र भी है और सत्ता भी. कवि चाय के माध्यम से आम आदमी की भावनाओं, चिंताओं और सपनों को उजागर करता है. प्रकाशक: वेरा प्रकाशन *** नकारती हूँ निर्वासन | प्रभा मुजुमदार इन दिनों झूठ का सबसे कड़ा मुक़ाबला झूठ से ही है. संसद से सड़क तक, बाजार से धर्मस्थलों तक, खबरों, निष्कर्षों, बहसों, उद्बोधनों, उद्धरणों में झूठ... ये कविताएं पुरुष सत्ता के दुराग्रहों-पूर्वाग्रहों, निष्कर्षों- निर्णयों और दंभ पूर्ण आदेशों के प्रतिरोध में एक स्त्री का साहस और उम्मीद भरा कदम है; मगर इसके व्यापक अर्थ और संदर्भ भी हैं. प्रकाशक: बोधि प्रकाशन *** सुख को भी दुख होता है | श्रुति कुशवाहा हारे हुए लोग आखिर कहां जाते हैं जो अपने आखिरी इंटरव्यू में हो गए फेल जिनकी छुट्टी की अर्जी नामंजूर हो गई जिन्हें एडवांस देने से मना कर देता है बॉस जो पूरा नहीं कर पाते बच्चों से किया वादा वो जो मीटिंग में सबसे कोने बैठते हैं... इस संग्रह की कविताओं का मानवीकरण किया जाए तो वह दिखेगी कच्ची लकड़ी के धुएं से घिरी उस स्त्री की तरह जो जीवन का बुझता चूल्हा पूरे प्राणपण से फूंके जा रही है. प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन समूह *** धूप के हस्ताक्षर | पन्ना त्रिवेदी मुझे लगा था रो पड़ना जीवित मनुष्य की एक सहज प्रक्रिया है आदिम और अन्तिम क्रिया भी क्या पता था रोने के लिए भी कोई अलग सा कमरा होना चाहिए कल बोस ने कहा था : रोने के लिए ही होते हैं बाथरूम के कोने.... इस संग्रह की कविताओं में समय, समाज और सत्ता प्रतिष्ठान की नीयत के विरुद्ध एक उत्कट विकलता है, जो हमें इस रचनाकार की मानसिक बुनावट, उनकी सादगी के सौन्दर्य, उनकी चिन्ता और भावप्रवणता से अवगत कराती हैं. प्रकाशक: सेतु प्रकाशन *** बस चाँद रोएगा | मदन कश्यप कुत्तों को भी कुत्ते की तरह जीने देते हो जब तक उन्हें मार नहीं डालते. गिलहरियाँ गिलहरियों की तरह ही फुदकती हैं मछलियाँ मछलियों-सी ही तैरती हैं और मुर्गे कुकड़ूँ कू ही बोलते हैं मारे जाने से पहले तक. फिर जब तक भी जीने देते हो एक स्त्री को स्त्री की तरह क्यों नहीं जीने देते तुम तो उसे मारने से पहले ही मार डालते हो! इस संग्रह की कविताओं में वृहत्तर समाज, लोक और विचार शामिल हैं. ये कविताएं मनुष्य के इहलोक पर बल देती हैं. प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन समूह *** प्रजातंत्र में कबूतर | राजेश्वर वशिष्ठ समुद्र को सुनना; जैसे सुनना तुम्हारे मन की बात समुद्र को सुनना; जैसे सुनना रुदन किसी मौन का पूनम के चांद तले, सिसकियों के उफ़ान में समुद्र रोता है अशांत खारे पानी में डूबता-तैरता, कोई नहीं समझता उसका दुःख... पाँच खंडों में विभाजित इस संग्रह की कविताओं में संसार के सामाजिक व राजनीतिक सरोकार तो हैं ही स्त्री मन की थाह लेने की कोशिश भी है. प्रकाशक: वेरा प्रकाशन *** परिधि से बाहर | पल्लवी विनोद जैसे वेश्यालय की दीर्घा में खड़ी औरतें अभ्यस्त हो जाती हैं उन मुद्राओं की जिन पर रींझ कर उन तक चला आता है राहगीर वैसे ही हम भी अभ्यस्त हो चुके तुम्हारे शोर के क्या तुम्हें पता है? यह संग्रह व्यक्ति और समाज की परिधियों को चुनौती देते हुए उन प्रश्नों को उठाता है, जिन पर अकसर चुप्पी साध ली जाती है. ये कविताएं जीवन के अनदेखे पहलुओं को उजागर करती हैं चाहे वे हाशिए पर खड़े लोग हों, व्यवस्था की विसंगतियां हों, प्रेम की जटिलताएं हों, या फिर रोज़मर्रा की छोटी-बड़ी लड़ाइयां. प्रकाशक: बोधि प्रकाशन *** काजल की मेड़ | अनिला राखेचा चाँदी के एक सिक्के-सा है हमारा रिश्ता. उसके दो पहलू मैं और तुम. एक-दूसरे से विपरीत होते हुए भी एक-दूसरे से बँधे हुए, जुड़े हुए. दोनों साथ हैं तो खनक है जीवन में !! मानवीय संवेदनाओं, प्रेम, संघर्ष, घर-परिवार, कुटुम्ब और समाज के विविध अनुभवों से लबरेज यह संग्रह कुछ सर्वथा नवीन प्रश्नों और चिन्ताओं की गहन अभिव्यक्ति करता है. प्रकाशक: वाणी प्रकाशन *** 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' के वर्ष 2025 की सूची में शामिल सभी रचनाकारों, लेखकों, अनुवादकों प्रकाशकों को हार्दिक बधाई! साहित्य और पुस्तक संस्कृति के विकास की यह यात्रा आने वाले वर्षों में भी आपके संग-साथ बनी रहे. 2026 शुभ हो. पाठकों का प्यार बना रहे. #top10books #top10 #bestbooks #bestbooksof2025