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श्रीमद भागवत गीता शंकर भाष्य श्लोक 2.12-13 हिंदी अर्थ सहित श्रीमद भगवत गीता, एक प्राचीन भारतीय धार्मिक ग्रंथ है जो महाभारत के महत्वपूर्ण भाग के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। इस ग्रंथ में भगवान कृष्ण अर्जुन को मानसिक और नैतिक विषयों पर दिएगए उपदेश और ज्ञान का उपयोग करते हुए उसे उठने वाले अनेक संकटों के सामने खड़ा होने के लिए प्रेरित करते हैं। यह ग्रंथ जीवन के विभिन्न मामलों, धर्म, कर्तव्य, निष्काम कर्म,योग, भक्ति, श्रद्धा और साधना से संबंधित महत्वपूर्ण सिद्धांतों को संकलित करता है।श्रीमद भगवत गीता एक उद्धरण कनिष्ठ पुराण है।और उसे अध्यायों और श्लोकों के रूप में व्यवस्थित किया गया है। यह अनन्य भक्ति,भगवतो की सेवा, दया, समता, स्वधर्म के पालन, और अटल मन और चित्त का विकास प्रोत्साहित करने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में मान्यता प्राप्त करती है। भागवत गीता में विभिन्न प्रकार के ज्ञान का उपदेश दिया गया है। यहां कुछ महत्वपूर्ण ज्ञान की बातें हैं जो इस ग्रंथ में प्रस्तुत किए गए हैं: 1. कर्म योग: भगवत गीता में कहा गया है कि हमें अपने कर्मो पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और निष्काम कर्म करना चाहिए। यह सिद्धांत कहता है के हमें अपने कर्मो में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए और फल की चिंता करनी नहीं चाहिए। 2. भक्ति योग: भगवत गीता में भक्ति योग का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें भगवान की भक्ति,देवी-देवताओं की सेवा, प्रार्थना, मंत्र -जाप,आराधना और व्रत आदि को प्रमुखता से बताया गया है। 3. ज्ञान योग गीता में ब्रह्मज्ञान और आत्मज्ञान की महत्वपूर्णता को बताया गया है। यह ज्ञानयोग कहलाता है और इसके अंतर्गत आत्मा के अच्छे और बुरे गुणों को समझने और उसे शांत एवं आनंदपूर्वक जीने का उपदेश दिया गया है। 4. कर्म फल और त्याग गीता में कहा गया है।कि हमें कर्म फल में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए और कर्मों का त्याग करना चाहिए। यह ज्ञान का सिद्धांत है कि कर्म करना हमारा कर्तव्य है,लेकिन परिणामों का उपेक्षा करना चाहिए। ये केवल कुछ मात्र हैं भागवत गीता के ज्ञान की बातें, और इस ग्रंथ में भी और भी गहराई और विस्तृतता है। इसमें सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी मार्गदर्शन दिया गया है। #शश्वत#सनातन#shashwatsanatan #श्रीमद #भागवत #गीता#शंकर #भाष्य#प्राचीन #भारतीय #धार्मिक #ग्रंथ #ज्ञान #योग #गीता#ब्रह्मज्ञान#आत्मज्ञान#कर्म#फल श्रीमद् भगवद् गीता, ब्रह्मविद्या, वेदान्ता, अर्जुन, कृष्ण, धर्म, योग, मोक्ष, अध्यात्म, ज्ञान, आत्मा, प्रकृति, कर्म, ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, शांति, जीवन दर्शन, भगवान की संदेश, आध्यात्मिकता, संसार, आत्मसंयम, उपासना, श्रद्धा, विवेक, समता, अनासक्ति, निर्विकारीता, प्रारब्ध, सत्य, कर्माधिकार, धैर्य, अविद्या, वैराग्य, ज्ञानमार्ग, स्वधर्म, निःश्चलता, प्रसन्नता, अपवर्तन, आदित्य, पुरुषोत्तम, अव्यय, अधिष्ठान, मनोनिग्रह, सद्भाव, आस्था, यज्ञ, समद्रष्टा, संन्यास, स्वधर्माचरण, परमगति, #भगवद्गीता,#ब्रह्मविद्या,#वेदान्ता,#योग,#कृष्ण,#अर्जुन,#धर्म,#ज्ञान,#आध्यात्मिकता,#मोक्ष,#अध्यात्म,#अर्जुन,#प्रकृति,#कर्म,#ज्ञानयोग,#कर्मयोग,#भक्तियोग,#शांति,#जीवनदर्शन,#भगवान,#आत्मा,#संसार,#आत्मसंयम,#उपासना,#श्रद्धा,#विवेक,#समता,#असंगता,#निर्विकारीता,#प्रारब्ध, #सत्य, #कर्माधिकार, #धैर्य, #अविद्या, #वैराग्य, #ज्ञानमार्ग, #स्वधर्म, #निःश्चलता, #प्रसन्नता,#अपवर्तन, #आदित्य, #पुरुषोत्तम, #अव्यय, #अधिष्ठान, #मनोनिग्रह, #सद्भाव, #आस्था, #यज्ञ, #समद्रष्टा, #संन्यास, #स्वधर्माचरण, #परमगति, #साधना।