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सुप्रीम कोर्ट में 16 साल की लड़की 9 дней назад

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सुप्रीम कोर्ट में 16 साल की लड़की
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सुप्रीम कोर्ट में 16 साल की लड़की

Join this channel to get access to perks:    / @jaihindmaithilinews   Be a Member Of this Channel to make an excellent Hindu Sanatan Circle You can Support through UPI: 88826 42337 यह बहस मुख्य रूप से यौन सहमति की न्यूनतम उम्र (Age of Consent) को लेकर है, जो वर्तमान में POCSO एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) के तहत 18 वर्ष तय की गई है। सवाल में उल्लिखित "सहमति से अपराध नहीं" का दावा गलत है—कानून के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र की किसी भी लड़की (या बच्चे) के साथ शारीरिक संबंध, भले ही सहमति हो, अपराध ही माना जाता है। लेकिन इस मुद्दे पर अदालत में न्यायिक विवेक (judicial discretion) के उपयोग और कानून में संशोधन की मांग पर बहस हो रही है। सहमति का मतलब: सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि नाबालिग की "सहमति" कानूनी रूप से अप्रासंगिक (irrelevant) है। उदाहरण के लिए, 2025 में एक सामूहिक बलात्कार मामले में कोर्ट ने कहा, "नाबालिग पीड़िता की सहमति का कोई महत्व नहीं; डर के कारण की गई सहमति, सहमति नहीं होती।" पुरानी स्थिति: 2012 से पहले सहमति की उम्र 16 वर्ष थी (IPC की धारा 375 के तहत), लेकिन POCSO ने इसे 18 वर्ष कर दिया। अब बहस यही है कि क्या इसे वापस 16 वर्ष करना चाहिए? जुलाई 2024 के अंत में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें POCSO एक्ट में संशोधन की मांग की गई। उनका तर्क:16-18 वर्ष की किशोरावस्था में प्रेम संबंध आम हैं। ऐसे मामलों में दोनों पक्षों के बीच सहमति से बने संबंधों को अपराध मानना अनुचित है। कानून में "रोमियो एंड जूलियट" जैसे प्रावधान जोड़ें, जहां समान उम्र के किशोरों के संबंधों को छूट दी जाए। कर्नाटक हाईकोर्ट (2022) ने भी इसी पर टिप्पणी की थी: "16 साल की लड़कियों के प्रेम संबंधों के कई मामले आ रहे हैं; लॉ कमीशन को सहमति की उम्र पर पुनर्विचार करना चाहिए।" केंद्र सरकार का जवाब (जुलाई 2025): सुप्रीम कोर्ट को हलफनामा देकर सरकार ने साफ कहा:सहमति की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं हो सकती, क्योंकि यह नाबालिगों (खासकर लड़कियों) की सुरक्षा के लिए है। लेकिन, किशोरावस्था के प्रेम संबंधों में न्यायिक विवेक का उपयोग किया जा सकता है—यानी, सजा में छूट या मामला बंद करने का विकल्प। तर्क: जब अपराधी करीबी होता है, बच्चा शिकायत नहीं कर पाता। "सहमति" का दावा बच्चे को दोषी ठहराने जैसा है। बहस जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से और विस्तृत जवाब मांगा है। एक हालिया फैसले (अक्टूबर 2025) में कोर्ट ने फिर दोहराया: "नाबालिग की सहमति बलात्कार मामले में कोई मायने नहीं रखती।" क्यों है यह बहस महत्वपूर्ण?समर्थक तर्क (याचिकाकर्ता): किशोरों के बीच स्वाभाविक संबंधों को अपराध बनाना जेल भर देगा। अंतरराष्ट्रीय मानक (जैसे WHO) किशोरावस्था को 10-19 वर्ष मानते हैं। भारत में 50% से ज्यादा शादियां 18 वर्ष से पहले होती हैं—कानून को यथार्थवादी बनाएं। विरोधी तर्क (सरकार/कोर्ट): लड़कियां शारीरिक/मानसिक रूप से कमजोर होती हैं। सहमति का दावा अक्सर शोषण छिपाने के लिए होता है। सांख्यिकी: NCRB डेटा के अनुसार, 90% POCSO मामले परिचितों द्वारा होते हैं। संभावित परिणाम: कोर्ट लॉ कमीशन को निर्देश दे सकता है या संशोधन सुझा सकता है। लेकिन तत्काल बदलाव की संभावना कम है।

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