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Bundelkhand Ka Sankshipt Itihas (History)—बुंदेलखंड का ऐतिहासिक सफर' |**Exclusive Hindi Documentary

Bundelkhand Ka Sankshipt Itihas (History)—बुंदेलखंड का इतिहास |**Exclusive Hindi Documentary पुरातात्विक साहित्यिक शोधों कि विपुलता ने इतने नये तथ्य प्रस्तुत किए हैं कि भारतवर्ष के समग्र इतिहास से पनरालेखन की आवश्यकता प्रतीत होने लगी है। "बुंदेलखंड' का इतिहास भी इसी प्रकार नयी शोधों के संदर्भ में आलेखन की अपेक्षा रखता है। "बुंदेलखंड 'शब्द मध्यकाल से पहले इस नाम से प्रयोग में नहीं आया है। इसके विविध नाम और उनके उपयोग आधुनिक युग में ही हुए हैं। बीसवीं शती के प्रारंभिक दशक में रायबहादुर महाराजसिंह ने बुंदेलखंड का इतिहास लिखा था। इसमे बुंदेलखंड के अन्तर्गत आने वाली जागीरों और उनके शासकों के नामों की गणना मुख्य थी। दीवान प्रतिपाल सिंह ने तथा पन्ना दरबार के प्रसिद्ध कवि "कृष्ण' ने अपने स्रोतों से बुंदेलखंड के इतिहास लिखे परन्तु वे विद्वान भी सामाजिक सांस्कृतिक चेतनाओं के प्रति उदासीन रहे। #BundelkhandTajAgro पं० हरिहर निवास द्विवेदी ने "मध्य भारत का इतिहास' ग्रंथ में बुंदेलखंड की राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक उपलब्धियों की चर्चा प्रकारांतर से की है। इस ग्रंथ में कुछ स्थानों पर बुंदेलखंड का इतिहास भी आया है। एक उत्तम प्रयास पं० गोरेलाल तिवारी ने किया और "बुंदेलखंड का संक्षिप्त इतिहास' लिखा जो अब तक के ग्रंथो से सबसे अलग था परन्तु तिवारीजी ने बुंदेलखंड का इतिहास समाजशास्रीय आधार पर लिख कर केवल राजनैतिक घटनाओं के आधार पर लिखा है। बुंदेलखंड सुदूर अतीत में शबर, कोल, किरात, पुलिन्द और निषादों का प्रदेश था। आर्यों के मध्यदेश में आने पर जन जातियों ने प्रतिरोध किया था। वैदिक काल से बुंदेलों के शासनकाल तक दो हज़ार वर्षों में इस प्रदेश पर अनेक जातियों और राजवंशं ने शासन किया है और अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना से इन जातियों के मूल संस्कारों को प्रभावित किया है। विभिन्न शासकों में मौर्य, सुंग, शक, हुण, कुषाण, नाग, वाकाटक, गुप्त, कलचुरि, चन्देल, अफगान, मुगल, बुंदेला, बघेल, गौड़, मराठ और अंग्रेज मुख्य हैं। ई० पू० ३२१ तक वैदिक काल से मौर्यकाल तक का इतिहास वस्तुत: बुंदेलखंड का "पौराणिक-इतिहास' माना जा सकता है। इसके समस्त आधार पौराणिक ग्रंथ है। १. पौराणिक इतिहास : समस्त भारतीय इतिहासों में "मनु' मानव समाज के आदि पुरुष हैं। इनकी ख्याति कोसल देश में अयोध्या को राजधानी बनाने और उत्तम-शासन व्यवस्था देने में है। महाभारत और रघुवंश के आधार पर माना जाता है कि मनु के उपरांत इस्वाकु आऐ और उनके तीसरे पुत्र दण्डक ने विन्धयपर्वत पर अपनी राजधानी बनाई धी । मनु के समानान्तर बुध के पुत्र पुरुखा माने गए हैं इनके प्रपौत्र ययति थे जिनके ज्येष्ठ पुत्र यदु और उसके पुत्र कोष्टु भी जनपद काल में चेदि (वर्तमान बुंदेलखंड) से संबंद्ध रहे हैं। एक अन्य परंपरा कालिदास के "अभिज्ञान शाकुंतल' से इस प्रकार मिलती है कि दुष्यंत के वंशज कुरु थे जिनके दूसरे पुत्र की शाखा में राजा उपरिचर-वसु हुए थे । इनकी ख्याति विशेष कर शौर्य के कारण हुई है। इनके उत्रराधिकारियों को भी चेदि, मत्स्य आदि प्रांतो से संबंधित माना गया है। बहरहाल पौराणिक काल में बुंदेलखंड प्रसिद्ध शासकों के अधीन रहा है जिनमें चन्द्रवंशी राजाओं की विस्तृत सूची मिलती है। पुराणकालीन समस्त जनपदों की स्थिति बौद्धकाल में भी मिलती है। चेदि राज्य को प्राचीन बुंदेलखंड माना जा सकता है। बौद्धकाल में शाम्पक नामक बौद्ध ने बागुढ़ा प्रदेश में भगवान बुद्द के नाखून और बाल से एक स्तूप का निर्माण कराया था। वर्तमान मरहूत (वरदावती नगर) में इसके अवशेष विद्यमान हैं। बौद्ध कालीन इतिहास के संबंध में बुंदेलखंड में प्राप्त तत्युगीन अवशेषों से स्पष्ट है कि बुंदेलखंड की स्थिती में इस अवधि में कोई लक्षणीय परिवर्तन नहीं हुआ था। चेदि की चर्चा न होना और वत्स, अवन्ति के शासकों का महत्व दर्शाया जाना इस बात का प्रमाण है कि चेदि इनमें से किसी एक के अधीन रहा होगा। पौराणिक युग का चेदि जनपद ही इस प्रकार प्राचीन बुंदेलखंड है। २. मौर्यकाल : मौर्यों के पहले का राजनैतिक जो कि बुंदेलखंड क्षेत्र की चर्चा करता हो उपलब्ध नहीं है। वर्तमान खोजों तथा प्राचीन वास्तुकला, चित्रकला, मूर्तिकला, भित्तिचित्रों आदि के आधार पर कहा जा सकता है कि जनपद काल के बाद प्राचीन चेदि जनपद बाद में पुलिन्द देश के साथ मिल गया था । सबसे प्राचीन साक्ष्य "एरन' की परातात्विक खोजों और उत्खननों से उपलब्ध हुए हैं। ये साक्ष्य ३०० ई० पू० के माने गए हैं। इस समय एरन का शासक धर्मपाल था जिसके संबंध में मिले सिक्कों पर "एरिकिण' मुद्रित है। त्रिपुरी और उज्जयिनि के समान एरन भी एक गणतंत्र था । मौर्यशासन के आते ही समस्त बुंदेलखंड (जिनमें एरन भी था) उसमे विलीयत हुआ। मत्स्य पुराण और विष्णु पुराण में मौर्य शासन के १३० वर्षों का यह साक्ष्य है- उद्धरिष्यति कौटिल्य सभा द्वादशीम, सुतान्। मुक्त्वा महीं वर्ष शलो मौर्यान गमिष्यति।। इत्येते दंश मौर्यास्तु ये मोक्ष्यनिंत वसुन्धराम्। सप्त त्रींशच्छतं पूर्ण तेभ्य: शुभ्ङाग गमिष्यति। मौर्य वंश के तीसरे राजा अशोक ने बुंदेलखंड के अनेक स्थानों पर विहारों, मठों आदि का निर्माण कराया था । वर्तमान गुर्गी (गोलकी मठ) अशोक के समय का सबसे बड़ा विहार था। बुंदेलखंड के दक्षिणी भाग पर अशोक का शासन था जो उसके उज्जयिनी तथा विदिशा मे रहने से प्रमाणित है। परवर्ती मौर्यशासक दुर्बल थे और कई अनेक कारण थे जिनकी वजह से अपने राज्य की रक्षा करने मे समर्थ न रहै फलत: इस प्रदेश पर शुङ्ग वंश का कब्जा हुआ जिसे विष्णु पुराण तथा मत्स्य पुराण में इस प्रकार दिया है - तेषामन्ते पृथिवीं दस शुङ्गमोक्ष्यन्ति । पुण्यमित्रस्सेना पतिस्स्वामिनं हत्वा राज्यं करिष्यति ।। विष्णुपुराण तुभ्य: शुङ्गमिश्यति। पुष्यमिन्नस्तु सेनानी रुद्रधृत्य स वृहदथाल कारयिष्यीत वै राज्यं षट् त्रिशंति समानृप:।। मत्स्य पुराण वृहद्थों को भास्कर पुण्यमित्र का राज्य कायम होना वाण के "हषचरित' से भी समर्थित है।

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