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मैं और अहम् का अंतरहम रोज़ अपने बारे में बोलते हैं—मैं छात्र हूँ, मैं जॉब करता हूँ, मैं बाप हूँ, मैं बीमार हूँ। ये सब बदलते रहते हैं। इसलिए इसे "नकली मैं" या "अहम्" कहते हैं। यह अस्थायी है, जड़ है, और हर वक्त बदलता रहता है। लेकिन जो आपको बचपन से लेकर आज तक एक जैसा अनुभव होता है, वह "असली मैं" है। यह निर्गुण, निराकार और परमात्मा है। जब आप इस असली मैं में रहते हैं, तो दुख नहीं होता। यही आत्मज्ञान है।जागृत, स्वप्न और सुषुप्तिहमारे जीवन में तीन अवस्थाएँ होती हैं—जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति। सुषुप्ति यानी गहरी नींद, जब आपको कुछ भी याद नहीं रहता। लेकिन सुबह उठकर आप कहते हैं—“मैं बहुत आनंद से सोया।” उस समय आपको न तो संसार का भान था, न शरीर का, न ही अपने "मैं" का। फिर भी आप आनंद में थे। यही असली मैं है। जब आप जागृत अवस्था में भी इसी असली मैं में रहें, तो आपको कोई दुख नहीं होगा।योग और वियोगसंसार में दो ही चीज़ें होती हैं—संयोग और वियोग। हर वस्तु, हर व्यक्ति, हर परिस्थिति से आपका हर समय वियोग हो रहा है। बचपन चला गया, जवानी चली गई, मृत्यु हो गई, गरीबी चली गई, अमीरी चली गई… सब अवस्थाएँ वियोग में जा रही हैं। संयोग रूपी लकड़ी हर समय वियोग रूपी अग्नि में जल रही है। यही सारा संसार वियोग में प्रतिपल जा रहा है। जो अपने आप होता है, वही स्थाई है।आत्मा और अनात्माजो संसार आपको दिखाई दे रहा है, यह सब एक ही ब्रह्म तत्व से बना हुआ है। जैसे समुद्र में मछलियाँ हैं, मगरमच्छ हैं, अनेक प्रकार के जीव हैं, समुद्र के पानी में नमक है, अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ हैं, रत्न हैं, खनिज पदार्थ हैं, बर्फ के ढेले हैं, कहीं पानी किसी रंग का दिखता है, तो कहीं किसी रंग का, कभी ज्वार-भाटा आता है, कभी बुलबुले बन जाते हैं, कभी फेन आ जाती है… लेकिन सारा समुद्र है तो समुद्र ही है। इसी तरह, जब हम संसार में सब चीज़ों को अलग-अलग अनुभव करते हैं, तो यह अनात्मा या संसार है। जब एक अनुभव करते हैं, तो यह ब्रह्म है।ब्रह्म ज्ञान और मुक्तिजब हम इस संसार को और सारे अनंत ब्रह्मांडों को एक समझकर अपने आप को उसमें विलीन कर देते हैं, तो यही ब्रह्म ज्ञान है। यही अध्यात्म का अंतिम सार है। आप कितने भी जप-तप, व्रत, तीर्थ, दान, शास्त्र ज्ञान, प्रवचन कर लें, जब तक इस स्थिति तक नहीं पहुँचेंगे, आपको आत्मज्ञान या ब्रह्म ज्ञान नहीं होगा। यही अंतिम स्थिति है—सब कुछ में एकत्व का अनुभव कर लेना। यही ब्रह्म ज्ञान है, यही तत्व ज्ञान है, यही मुक्ति है, यही परमात्मप्राप्ति है, यही अपने स्वरूप में स्थित होना है।कहानी: रानी चुड़ाला और राजा शिखिध्वजरानी चुड़ाला और राजा शिखिध्वज दोनों ही अपने गृहस्थ जीवन में खुश थे, और राज्य की ज़िम्मेदारियाँ निभा रहे थे। दोनों अपने राज्य के एक संत के पास प्रवचन सुनने जाया करते थे। रानी चुड़ाला उनके प्रवचनों को मनन करती रही, जबकि राजा अपने राज्य को चलाने के बहाने ध्यान नहीं देते थे। एक दिन रानी चुड़ाला को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो गई। उनके मुखड़े पर तेज बढ़ने लगा, और उनका रूप भी और आकर्षक हो गया। राजा उनके प्रति और आकर्षित हो गए। एक दिन राजा ने पूछा—“रानी, आपका सौंदर्य दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।” रानी ने कहा—“यह सौंदर्य मेरा नहीं है, ब्रह्म ज्ञान होने से हुआ है।” राजा ने आश्चर्यचकित होकर जवाब दिया—“बड़े-बड़े साधु संत अनंत जन्मों में भी ब्रह्म ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते, तुम एक साधारण स्त्री बनकर गृहस्थ जीवन में ब्रह्म ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकती हो?” राजा ने इस बात पर विश्वास नहीं किया, लेकिन रानी कुछ ज़िद नहीं करती रहीं। बस राजा को ब्रह्म ज्ञान की ओर प्रेरित करती रहीं। एक दिन राजा ने सोच लिया कि शायद जंगल में तपस्या करने से ही ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होगी। उन्होंने रानी से अपनी इच्छा बताई, और रानी ने समझाया कि ब्रह्म ज्ञान घर में बैठकर भी मिल सकता है, लेकिन राजा ने एक न सुनी। एक दिन उन्होंने राज्य छोड़कर जंगल में जाकर तप करना शुरू कर दिया। रानी चुड़ाला को ब्रह्म ज्ञान था, लेकिन सिद्धियाँ नहीं थीं। उन्होंने सिद्धियाँ पाने की इच्छा से तपस्या की और देखा कि राजा जंगल में तपस्या कर रहे हैं। रानी खुश हुईं कि राजा सुरक्षित हैं और ब्रह्म ज्ञान के लिए तप कर रहे हैं। रानी ने अपने मंत्रियों के साथ बैठक की और कहा—“राजा कुछ समय के लिए राज्य से बाहर गए हैं, इस बीच मैं राज्य संभाल लूँगी, और तुम अपने-अपने कार्य करते रहो।” इस तरह 18 साल बीत गए। फिर रानी ने सोचा कि राजा के पास जाना चाहिए। उन्होंने अपनी सिद्धियों की मदद से एक ऋषि के रूप में परिवर्तन किया और उड़ती हुई राजा के पास पहुँच गईं। राजा ने आकाश मार्ग से आते हुए एक सिद्ध देखा, उन्हें प्रणाम किया और उन्हें अपने पास बैठाया।रानी ने राजा को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया। राजा ने बहुत विनम्रता से उस उपदेश को धारण किया, और धीरे-धीरे ब्रह्म ज्ञानी हो गए। तब रानी ने अपने असली स्वरूप में आकर बताया—"मैं आपकी पत्नी, रानी चुड़ाला हूँ। आपको यह उपदेश घर में बैठकर मिल सकता था, लेकिन आपकी जिद की वजह से आपको 18 साल बाद मिला।" इस तरह दोनों जंगल से अपने राज्य में वापस आ गए और फिर से राज्य संभालने लगे।कहानी से सीखइस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ब्रह्म ज्ञान घर-गृहस्थी में रहते हुए भी मिल सकता है। बस जरूरत है—लग्न और विश्वास की। जब भी हम इस रास्ते पर लग्न लगाते हैं, तो गुरु की प्राप्ति भी अपने आप हो जाती है। गुरु हमें अपने आप ढूँढ़ते हुए आ जाता है। #आध्यात्मिकज्ञान #मैं_और_अहम् #आत्मा_अनात्मा #ब्रह्मज्ञान #योग #संसार_में_एकत्व #रानी_चुड़ाला #राजा_शिखिध्वज #भागवत_गीता #रामायण #कबीर_दास #ज्ञान_योग #भक्ति_योग #मुक्ति #आत्मज्ञान #SpiritualKnowledge #SelfAndEgo #SoulAndBody #BrahmaGyan #Yoga #Oneness #QueenChudala #KingShikhidvaja #BhagavadGita #Ramayana #KabirDas #KnowledgeYoga #DevotionYoga #Liberation #SelfRealization #SpiritualJourney