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मार्क्सवाद क्या है? संसार का वैज्ञानिक दृष्टिकोण 1 год назад

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मार्क्सवाद क्या है? संसार का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

इस विडिओ में - मार्क्सवाद क्या है? एक परिचय। जिस प्रकार प्रकृति के नियमों की समझ बाह्य प्रकृति को बदलने में हमारे काम आती है उसी प्रकार समाज के अध्ययन से प्राप्त हुई वैज्ञानिक समझ हमें मानव समाज को बदलने और बेहतर बनाने के तरीके सुझाती है. हालांकि हम निर्जीव प्रकृति की ही भाँति सजीव मानवों के भविष्य का फैसला नहीं कर सकते. हम ये जानते हैं की अंतःकरण conscience के स्तर पर हम आदमी स्वतंत्र है. हम किसी के ज़ेहन में ज़बरदस्ती कोई बात नहीं डाल सकते, लेकिन अपने जैसे विचार वालों के साथ गठबंधन ज़रूर कर सकते हैं, एक बेहतर समाज के निर्माण के उद्देश्य से, उन नियमों के इस्तेमाल से, जिनकी अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हमने पहचान की हो. हालांकि हर मानव का मन एक मायने में स्वतंत्र है, लेकिन मानव मन शून्य से नहीं उपजता. हर मानव का मन इसी समाज की पैदाइश है, उसके भीतर के हर तथ्य इसी समाज से आए हैं. हम किसी एक मानव को संवाद से बदल पाएंगे की नहीं हे कोई नहीं कह सकता, लेकिन ये कहा जा सकता है की एक भिन्न समाज में, भिन्न उत्पादन व्यवस्था में, मानव भी भिन्न प्रकार के पैदा होंगे. प्रजातंत्र में कोई नेता कितना भी लोकप्रिय हो जाए, वह राजा नहीं बन सकता. हमारा जनतंत्र नेताओं और हाकिमों की भलमानसी पर नहीं बल्कि उन संस्थाओं पर टिका है जो हमारे प्रजातंत्र की आधारशिला हैं. जैसे केवल मानव प्रवृत्ति के आधार पर हम राजतन्त्र का होना या न होना नहीं समझ सकते वैसे ही मानव स्वार्थ के आधार पर हम पूंजीवाद और बाजारवाद का होना नहीं समझ सकते. मानव हमेशा से स्वार्थी रहा है, लेकिन इतिहास के हर काल में उसका स्वार्थ अलग रूप लेने को मज़बूर होता रहा है, क्योंकि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं ये निर्भर करता है हमारी सामाजिक संरचना और पूर्वाग्रहों पर, जो वैसे तो मानवों के ही बनाए हैं, लेकिन हमारे नियंत्रण में नहीं. शादी की व्यवस्था मानवों ने ही बनाई है, इससे सम्बंधित कानून भी मानवों ने ही बनाए हैं, लेकिन कोई एक आदमी अपनी प्रवृत्ति या पसंद के अनुसार इनको नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता. धर्म आपको केवल आपके मन को काबू करना बताते हैं, तुम बदलो जग बदले का मंत्र देते हैं, दुनिया के कांटे निकलने के बजाय rubber की चप्पल पहन लेने का मंत्र देते हैं परलोक में न्याय की दिलासा देते हैं. वहीं हमारे जैसे भी कुछ लोग हैं जो इस दुनिया से परे कोई दुनिया नहीं मानते, दमन और शोषण के साथ adjust करने की बात को कायरतापूर्ण और शर्म की बात समझते हैं. हम ये समझते हैं की दुनिया हमेशा बदलती रही है और आगे भी बदलेगी. किसी देवता के आशीर्वाद से नहीं बल्कि मानव के सामर्थ्य से. किसी एक महापुरुष के नेतृत्व से नहीं बल्कि धरती के कोटि कोटि मानव मानवियों के साझा सामर्थ्य से. और हमको ये भी पता है की हमको रोकने वाले भी आएंगे,- जो कहेंगे की दमन और शोषण मानव की नियति है, इंसानों की प्रवृत्ति है या किसी देवता है फैसला है. खुद कभी करोड़पति न बनने की आशा रखने वाले, करोड़पतियों के हित में बोलेंगे, क्योंकि इनकी तक़दीर ही ग़ुलामी करने की है. और इनका होना ज़रूरी भी है, क्योंकि विपरीत विचारों का द्वन्द ही इतिहास का मोटर है, इसी द्वन्द से इतिहास को गति मिलती है, अगर विचार कभी न टकराएं तो समाज भी न बदलेगा. क्या हम सफल होंगे? अगर जीवन काल में जीत न सके तो क्या फायदा होगा? नफा नुकसान बनिए सोचते हैं, हम आजादी के परवाने हैं, Spartacus ने किस उम्मीद में महान रोमन साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया? अपने दमन और शोषण के खिलाफ लड़ने से बड़ा ध्येय और कोई हो ही नहीं सकता. हम लड़ेंगे अपनी आजादी के लिए, अपने बाद आने वालों के लिए. दुनिया के मज़दूरों एक हो, पूरी दुनिया है जीतने के लिए, ये धन्ना सेठ मुट्ठी भर.

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