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बाबा मोहनदास मंदिर भाडावास ।। रेवाड़ी।Baba Mohandas Mandir Bharawas Rewari #mohandasmandir #mandir #rewari #haryana #famousmandir #viral #viralvideo #viralvideos #bharawas #babamohanram #babamohndakipuniyatithi #baba mohan das ka camatkar #sidhbabamohndas #bhadawas #babamohandaskiaarti Baba Mohandas ki khani Baba Mohandas ki punyatithi babamohadas mohandas baba haryana rewari बाबा मोहनदास : बाबा मोहनदास का जन्म सन् 1500 के आसपास रेवाड़ी से 20 किलोमीटर दूर गाँव भाखली माजरा के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। वह बचपन में गाँव की वनस्थली में गायें चराते थे। कहा जाता है कि उनकी गायों के साथ दो अजनबी गायें भी चरने आती थीं। उन गऊओं को आते - आते कई मास व्यतीत हो गये। एक दिन सायंकाल उन गऊओं का पता लगाने हेतु स्वामी जी उन गायों के पीछे - पीछे चल पड़े। वे दोनों गांए नांधा गाँव के पहाड़ की एक गुफा में चली गईं। मोहनदास उनके साथ गुफा में प्रविष्ट हो गये। वहाँ जाकर देखते हैं कि एक योगी महात्मा अपने धूने के पास ध्यानमग्न बैठे हें। उन महात्मा ने अचानक अपनी आँखें खोलीं और मोहनदास से कहने लगे कि बीत ( चरवाही ) लेने आये हो। उन्होंने चुटकी भर भभूत मोहनदास के हाथ पर रखकर बोले कि घर जाकर इसे अपने अन्न भण्डार में रखकर ताला लगा देना और फिर किसी छिद्र में से आवश्यकतानुसार अन्न लेते रहना। मोहनदास ने भभूत अपने पल्ले में बांध ली और घर लौटकर सारा वृत्तांत अपनी माता को सुनाया और भभूत उन्हें सौंप दी। माता ने स्वामी जी के निर्देशानुसार सब व्यवस्था कर दी और इस प्रकार उनके वारे - न्यारे हो गये। शीघ्र ही यह बात आस - पड़ोस में फैल गई और फिर पड़ोसियों के आग्रह पर माता ने एक दिन भण्डार का द्वार उनके समक्ष खोल दिया। लेकिन अब वही भंडार राख से भरा हुआ था। इससे मोहनदास की माता को गहरा आघात लगा और दोबारा मोहनदास को गुफा में भेजकर महात्मा जी से पुनः वही भभूत लाने को कहा। लेकिन अबकी बार मोहनदास को भभूत ने देकर ' वाक् सिद्धि ' का वरदान दे डाला। बाबा मोहनदास की समझ में कुछ भी नहीं आया। वे निराश होकर घर लौट आए। घर पहुंचने पर माता ने पूछा तो मोहनदास के मुख से सहसा से शब्द निकल पड़े कि माता तुम अपने अन्न भण्डार का द्वार खोलकर दिखाने से पूर्व तुम मर क्यों नहीं गई ? जनश्रुति है कि इन शब्दों के उच्चारित होते ही माता स्वर्ग सिधार गई। इस प्रकार वचन सिद्धि मोहनदास के लिए वैराग्य एवं भक्ति का महाद्वार खुल गया। घर - बार छोड़कर वह भड़ावास चले आए और यहाँ गहन वन में हींस के वृक्ष के नीचे धूना रमा दिया। अत्यन्त कठोर तपस्या के बाद उनहें दिव्य - ज्योति प्राप्त हुई। धीरे - धीरे उनकी ख्याति दूर - दूर तक फैलने लगी। अब वे जन - जन के आराध्य देव बन चुके थे। भाड़ावास की इस तपस्थली ने मंदिर का रूप ले लिया। Facebook page :- https://www.facebook.com/profile.php?...