У нас вы можете посмотреть бесплатно DAY 1 Conquering Saach Pass: Jimny's Epic Ride to Pangi Valley или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
*पहाड़ों के पार: भोपाल से साच पास और वापसी की यात्रा* **लेखक – चंदर संतानी (62 वर्ष), भोपाल में रहते हैं और एक जुनूनी रोड ट्रैवलर, प्रकृति प्रेमी और फोटोग्राफर हैं। पहाड़ों की खामोशी और सड़कों की आवाज़ उन्हें जीवन का सबसे सच्चा सुर देती है। उन्होंने अपनी यात्राओं के ज़रिए भारत के कई दुर्गम दर्रों और घाटियों में मानवता की गर्माहट, प्रकृति की विशालता, और आत्म निरीक्षण की सुंदरता को महसूस किया है। साच पास और सुराल घाटी की यह यात्रा उनके लिए सिर्फ़ एक सफर नहीं बल्कि आत्म अन्वेषण की कहानी है — जहाँ हर मोड़ जीवन का नया सबक बन गया। यात्रा की योजना और प्रस्तावना हम मानसून के थमने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि फिर एक नई पहाड़ी यात्रा शुरू की जा सके। साच पास हमारे बकेट लिस्ट में लंबे समय से था, और पांगी घाटी, इसका स्वाभाविक विस्तार—क्योंकि साच पास से उतरते ही रास्ता इसी सुंदर घाटी में पहुँचता है, जो मुख्यतः पांगवाल और भोट समुदायों से बसी है। ‘भोट’ से ही ‘भाटोरी’ शब्द बना है, और इस प्रकार पांगी घाटी पाँच भाटोरियों में विभाजित है - हुडन, सुराल, चासक, परमार और हिल्लू तुआन। यहाँ के भोट लोग गर्मियों और शरद ऋतु में अपने अल्पाइन आवास 'अधवारी' में रहते हैं, जहां वे मवेशियों की देखभाल, दूध और घी का संग्रह करते हैं। मैंने उपरोक्त यात्रा पर जाने का अपना मन्तव्य यात्रा प्रेमियों के व्हाट्सअप समूह में प्रकट किया तुरंत ही मुझ सहित चार लोगों की टीम तैयार हो गई— मैं, मेरी **4x4 जिम्नी जीप, ऊर्जावान पवन गुप्ता, जिनका हमेशा बैकपैक तैयार रखा होता है; मध्य आयु के trekker शशि भूषण और सेवानिवृत्ति के दहलीज पर झूलते डॉ. विजय सिंह ठाकुर कुल मिलाकर करीब 3300 किलोमीटरकी ड्राइव तय हुई। दिन 1: भोपाल से मुरथल *1 अक्टूबर* को भोर में भोपाल से प्रस्थान किया। शरद ऋतु की हल्की ठंड और उत्साह से भरी हवाओं ने ऊर्जा भर दी। देर रात तक हम मुरथल पहुँच गए— जहां गर्मागर्म पराठों की खुश्बू और अनगिनत ढाबों ने हमारा स्वागत किया। ट्रक इंजन की गड़गड़ाहट, सफरचंदों की हंसी, और गर्मागर्म पराठों की खुशबू के बीच हमनें रात वहीं बिताई।