У нас вы можете посмотреть бесплатно प्राचीन 'स्टोन की' तकनीक की खोज? 1000 साल पुराना चट्टान काटने का रहस्य | प्रवीण मोहन или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
आइये जानते हैं एक बड़ी दिलचस्प तकनीक के बारे में जिसका प्रयोग इस मन्दिर में किया गया|😯😯 ENGLISH CHANNEL ➤ / phenomenalplacetravel Facebook.............. / praveenmohanhindi Instagram................ / praveenmohan_hindi Twitter...................... / pm_hindi Email id - [email protected] अगर आप मुझे सपोर्ट करना चाहते हैं, तो मेरे पैट्रिअॉन अकाउंट का लिंक ये है - / praveenmohan 00:00 - परिचय 00:47 - "कीस्टोन कट" या "प्राचीन मेटल क्लेम्पिंग" तकनीक 02:09 - इसका उद्देश्य क्या है? 02:58 - इंटरलॉकिंग सिस्टम? 04:15 - उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का प्रमाण! 05:00 - जटिल शिल्पकला 06:00 - अद्भुत निर्माण तकनीक! 07:01 - प्राचीन मशीनी तकनीक का उदहारण! 08:26 - सात खम्भे सात दिन? 09:20 - जटिल निर्माण तकनीक! 10:33 - घूमने वाला संगीतमय स्तंभ! 11:23 - सैनिकों द्वारा बदलाव 11:52 - आसमानी दृश्य! 12:32 - मुख्य गर्भ गृह 13:56 - आखिर कहाँ हैं शिव और नंदी? 14:47 - कैलाश जैसा दिखने वाला शिवलिंग? 15:33 - निष्कर्ष नमस्कार मित्रों,आज हम नज़र डालेंगे कंबोडिया स्थित "प्रिय विहार" नामक प्राचीन हिन्दू मंदिर पर यहाँ हम देखते है चारों तरफ बिखरी हुई अपरिसीम मात्रा में चट्टानें.ये शिला-खंड किसी समय इस एक हज़ार वर्ष पुराने मंदिर का हिस्सा हुआ करते थे,पर कालांतर में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच हुए युद्ध के कारण, यह मंदिर अधिकांशतः नष्ट हो गया।पर,ये ध्वस्त हुए शिलाखंड हमें पत्थरों को काटने की प्राचीन तकनीक के बारे में कई दिलचस्प तथ्य बयान करते हैं। देखिए, इन शिलाखंडों को कितना काटा गया है,कितने सारे मापों और आकारों में! यहाँ चौकोर स्लॉट्स और क्यूब कट्स हैं।गोलाकार छिद्र भी हैं,ये देखिए बिल्कुल गोल छेद किया गया है.एक हज़ार वर्ष पहले ये कैसे संभव हो पाया?और यहाँ, आप इस पत्थर के एक कोने पर तराशे गए अंग्रेजी T आकार सा कट देख सकते हैं।आखिर इसका उद्देश्य क्या हो सकता है?संभवतः किसी तरल धातु को इसमें डाला गया हो, ताकि पास के पत्थर से इसे जोड़ा जा सके।इसे सामान्यतः "कीस्टोन कट" या "प्राचीन मेटल क्लेम्पिंग" तकनीक के नाम से जाना जाता है।हम T आकारनुमा कट वाले दो शिला खंडों को अगल बगल रख सकते हैं और फिर उसमें तरल धातु डालते हैं तो ठंडा होकर जम जाने पर दोनों पत्थर अविभाज्य हो जाते हैं क्लैम्प के रूप में।ये भी संभव है कि ये एक फीमेल स्लॉट हो और बगल वाले पत्थर को अंग्रेजी T आकार के"मेल प्रोजेक्शन" के साथ बनाया गया हो ताकि दोनों एकदम फिट हो जायें।ये सारी फिटिंग शिलाखंडों के अंदर वाले हिस्से में की गई है इसलिए हम बाहर से इसे देख नहीं पाते।बाहर से,अगर दीवाल को देखें,तो ये सब कुछ दिखाई नहीं पड़ता। यहाँ आप एक बहुत ही दिलचस्प चीज देख सकते हैं,एक छोटा नुकीला सा पत्थर अंदर स्थापित किया गया है। यह एक बड़ी दिलचस्प तकनीक है जिसका प्रयोग इस मंदिर में किया गया है।इसका उद्देश्य क्या है? साधारणतया आप सोचेंगे कि मंदिर निर्माता ने अनजाने में एक छिद्र छोड़ दिया होगा और बाद में उसे ढँक दिया होगा, इस छोटे से पत्थर से…पर वास्तव में कंबोडिया के ये प्राचीन निर्माता पत्थरों के निपुण और दक्ष शिल्पकार थे। आपको याद होगा,मैंने आपको पहले भी दिखाया था कि वो भिन्न भिन्न आकारों के शिलाखंडों को बड़ी ही आसानी से ऐसे जोड़ते थे मजाल है कि आपको कोने के शिलाखंडों में भी कोई जोड़ दिख जाए।एक दूसरा उदाहरण देखिए,यहाँ फिर, आप देखेंगे,एक नुकीला पत्थर अंदर घुसा हुआ आखिर इसके पीछे रहस्य क्या है? अंदर इन छिद्रों के साथ अवश्य कोई आपस में कसने वाला "इंटरलॉकिंग सिस्टम" है और ये नोक वास्तव में किसी "डोवेल" या "फास्टनर"का काम करती है जो कि अंदर निर्मित सभी छिद्रों से होकर गुजरती है। #हिन्दू #praveenmohanhindi #प्रवीणमोहन