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महाप्रभु श्री चैतन्य के अनुयायियों के जीवन पर पड़े सकारात्मक प्रभावों और उनसे प्राप्त शुभ परिणामों को दर्शाने वाले कुछ प्रमुख वृत्तांत इस प्रकार हैं Playlist: • Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhuji #vrindavan #barsana #Nandgaon #Goverdhan #Nathdwara #Jagannathpuri #gokul #rawal #rameshvaram #badrinath #kedarnath #dwarka #tirupati #Nilanchal #navdeep #BankeBihari #RadhaVallabh #RadhaRaman #Govinddev #Giriraj #sanatan #advait #Gaudiya #HareKrishna #RadheRadhe #Mathura #Braj #RadheKrishna #iskcon *१. पवित्र नाम के जाप से शुद्धिकरण और विनम्रता का मार्ग* भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु ने कलियुग में आत्म-साक्षात्कार (मोक्ष) के लिए एकमात्र साधन के रूप में भगवान के पवित्र नाम—हरे कृष्ण महामंत्र—के जाप पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि केवल नाम जपने से ही व्यक्ति सीधे भगवान से जुड़ सकता है और निश्चित रूप से उद्धार प्राप्त कर सकता है। उन्होंने ज्ञान की साधना, योग या सकाम कर्मों जैसे अन्य सभी मार्गों को वर्जित बताया, यह समझाने के लिए कि केवल नाम ही एकमात्र उपाय है, उन्होंने 'केवल' और 'हरेर् नाम' (भगवान का पवित्र नाम) शब्द को तीन बार दोहराया। सकारात्मक व्यवहार और निरंतर जाप के लिए, महाप्रभु ने अपने अनुयायियों को व्यवहार के तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए: उन्हें सड़क पर पड़ी घास से भी अधिक विनम्र होना चाहिए। उन्हें वृक्ष से भी अधिक सहनशील होना चाहिए। पेड़ को काटने या सूखने पर पानी न मिलने पर भी वह कभी विरोध नहीं करता। उन्हें व्यक्तिगत सम्मान की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, बल्कि दूसरों को हमेशा सम्मान प्रदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जो भक्त इन सिद्धांतों का पालन करते हुए निरन्तर नाम-जप करते हैं, वे सरलता से भगवान के पवित्र नाम का जाप कर सकते हैं और उनकी भक्ति सेवा दृढ़ता से बनी रहती है। उन्होंने भक्तों को निर्देश दिया कि वे इस श्लोक को पवित्र नाम के धागे में पिरोकर निरंतर स्मरण के लिए अपने गले में धारण करें, जिससे वे जीवन के अंतिम लक्ष्य—श्री कृष्ण के चरण कमलों—को प्राप्त कर सकें। *२. अपराध का निवारण और शरणागति का महत्व (गोपाल चापाल)* गोपाल चापाल नामक एक अभिमानी ब्राह्मण, जो नास्तिकों का मुखिया था, उसने श्रीवास ठाकुर के कीर्तन पर ईर्ष्यावश विघ्न डालने की कोशिश की। उसने श्रीवास ठाकुर के घर के बाहर देवी दुर्गा की पूजा की अपवित्र सामग्री रख दी, ताकि उन्हें नीचा दिखाया जा सके। इस अपराध के तीन दिन बाद ही उसे असहनीय दर्द वाला कुष्ठ रोग हो गया और उसके शरीर से खून रिसने लगा। जब गोपाल चापाल ने गंगा के किनारे बैठे हुए महाप्रभु को देखा, तो उसने उनसे अपनी पीड़ा दूर करने की गुहार लगाई। महाप्रभु अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने कहा कि शुद्ध भक्तों का अपमान करने वाले को वे उद्धार नहीं देंगे, बल्कि उसे करोड़ों वर्षों तक नरक में कष्ट भोगना पड़ेगा। हालांकि, श्री चैतन्य महाप्रभु ने उसे दया दिखाते हुए निर्देश दिया कि उसे सबसे पहले श्रीवास ठाकुर के पास जाना चाहिए और उनके चरणों में गिरकर दया की भीख माँगनी चाहिए। गोपाल चापाल ने ऐसा ही किया, और श्रीवास ठाकुर के चरणों का आश्रय लेने और उनकी कृपा प्राप्त करने से वह सभी पापी प्रतिक्रियाओं से मुक्त हो गया। यह वृत्तांत दर्शाता है कि कैसे शुद्ध भक्त के प्रति अपराध करने वाले व्यक्ति को भी, पश्चाताप और भक्त की शरण लेने पर, सकारात्मक परिणाम और पापों से मुक्ति मिलती है। *३. शत्रु का भक्त में परिवर्तन (चाँद काजी) जब नवद्वीप में संकीर्तन आंदोलन तेजी से बढ़ा, तो स्थानीय मुसलमानों ने, जिनमें चाँद काजी भी शामिल था, इस पर रोक लगाने की कोशिश की। काजी ने एक भक्त के घर जाकर मृदंग तोड़ दिया और चेतावनी दी कि यदि दोबारा संकीर्तन हुआ तो वह उनकी सारी संपत्ति जब्त कर लेगा और उन्हें मुसलमान बना देगा। इसके बाद, महाप्रभु ने बड़ी संख्या में अनुयायियों के साथ शहर में विशाल संकीर्तन जुलूस निकाला और काजी के घर पहुँचे। काजी भयभीत होकर छिप गया। जब काजी बाहर आया, तो महाप्रभु ने उससे वार्तालाप किया और गोहत्या जैसे पापों के बारे में उसके शास्त्रों के तर्क को खंडित किया। काजी ने महाप्रभु को बताया कि पिछली रात उसे एक अत्यंत भयानक शेर का सपना आया, जिसका मुख सिंह जैसा और शरीर मनुष्य जैसा था। उस शेर ने काजी की छाती पर अपने नाखून रखे और उसे चेतावनी दी कि उसने मृदंग तोड़ा है, इसलिए उसका सीना चीर दिया जाएगा। शेर ने केवल उसे सबक सिखाने के लिए बख्श दिया, लेकिन अगली बार संकीर्तन रोकने पर उसे और उसके पूरे परिवार को मार डालने की धमकी दी। काजी ने महाप्रभु को अपनी छाती पर पड़े नाखूनों के निशान भी दिखाए। इस घटना से वह इतना भयभीत हुआ कि उसने संकीर्तन को न रोकने का निश्चय कर लिया। जब महाप्रभु ने सुना कि काजी के मुख से ‘हरि, कृष्ण और नारायण’ जैसे पवित्र नाम निकले हैं, तो उन्होंने कहा कि इन नामों के जाप से उसके सभी पापी कर्मों का फल समाप्त हो गया है और वह शुद्ध हो गया है। काजी की आँखों में आँसू आ गए, उसने भगवान के चरण कमलों को छुआ और उनसे अपनी भक्ति को स्थिर करने के लिए प्रार्थना की। इसके बाद, काजी ने महाप्रभु को यह वचन दिया कि भविष्य में उसकी पीढ़ी में कोई भी इस संकीर्तन आंदोलन को नहीं रोकेगा। इस घटना ने एक विरोधी शासक को संकीर्तन आंदोलन के संरक्षक में बदल दिया, जिससे नवद्वीप में निर्बाध रूप से भक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ।