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1. The Mystery of Divine Madness: Sri Caitanya Mahaprabhu’s Final 18 Years! 😱✨ 2. 5 Shocking Ways to Attain Divine Mercy: Lessons from the Antya-Lila! 🙏🔥 3. Beyond Renunciation: The Secret Heart of Sri Caitanya's Final Pastimes! ❤️🌊 checkout: • Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhuji 1. चैतन्य महाप्रभु की अंतिम गुप्त लीलाएँ: क्या हुआ था जगन्नाथ पुरी के उन 18 वर्षों में? 🙏✨ 2. महाप्रभु का दिव्य प्रेम और 'दिव्योन्माद': जब भक्त की अनन्य भक्ति देख भगवान भी विचलित हो गए! 😭🔥 3. भक्त को मिली प्रभु की लात और हरिदास ठाकुर का अद्भुत महाप्रयाण! रोंगटे खड़े कर देने वाली कथा 🚩🙌 #vrindavan #barsana #Nandgaon #Goverdhan #Nathdwara #Jagannathpuri #gokul #rawal #rameshvaram #badrinath #kedarnath #dwarka #tirupati #Nilanchal #navdeep #BankeBihari #RadhaVallabh #RadhaRaman #Govinddev #Giriraj #sanatan #advait #Gaudiya #HareKrishna #RadheRadhe #Mathura #Braj #RadheKrishna #iskcon श्री चैतन्य महाप्रभु की 'अंत्य-लीला' में ऐसे कई प्रसंग हैं जो भक्तों के व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालते हैं और उन्हें परम आध्यात्मिक लाभ की ओर ले जाते हैं। ये घटनाएँ सिखाती हैं कि विनम्रता, आज्ञाकारिता और भगवान के प्रति शुद्ध प्रेम का परिणाम सदैव शुभ होता है। *हरिदास ठाकुर का आदर्श महाप्रस्थान* हरिदास ठाकुर का जीवन और उनकी मृत्यु एक भक्त के लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। अपनी वृद्धावस्था में उन्होंने महाप्रभु से प्रार्थना की कि वे उनके (प्रभु के) अंतर्धान होने से पहले अपना शरीर त्यागना चाहते हैं। उनकी अंतिम इच्छा प्रभु के मुख को देखते हुए और उनके चरणों को हृदय पर धारण करते हुए प्राण त्यागने की थी। महाप्रभु ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण किया। हरिदास ठाकुर ने अपनी इच्छाशक्ति से भगवान के सामने देह त्याग दी। इस घटना का सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि महाप्रभु ने स्वयं अपने हाथों से उनके शरीर को उठाया और नृत्य किया। उन्होंने स्वयं हरिदास ठाकुर को समुद्र के किनारे समाधि दी और उनके सम्मान में एक महान उत्सव आयोजित किया। यह प्रसंग भक्तों को सिखाता है कि जो पूरी तरह भगवान पर आश्रित होते हैं, भगवान स्वयं उनकी सेवा और सम्मान करते हैं। *शिवानंद सेन की असाधारण विनम्रता* शिवानंद सेन का प्रसंग भक्तों के लिए अहंकार त्यागने की एक महान शिक्षा है। जब नित्यानंद प्रभु ने क्रोध में आकर शिवानंद सेन को लात मारी, तो शिवानंद ने इसे अपना अपमान नहीं, बल्कि भगवान का आशीर्वाद माना। उनकी पत्नी दुखी थीं क्योंकि नित्यानंद प्रभु ने उनके पुत्रों को शाप दिया था, लेकिन शिवानंद ने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि यदि प्रभु की सेवा में कोई त्रुटि हुई है, तो दंड मिलना उचित है। उनकी इस विनम्रता का परिणाम यह हुआ कि नित्यानंद प्रभु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें गले लगा लिया। शिवानंद सेन ने अनुभव किया कि उस दिन उनकी भक्ति और जन्म सफल हो गया। यह प्रसंग सिखाता है कि जब भक्त अपने ऊपर होने वाले प्रहारों को प्रभु की कृपा मानकर स्वीकार करता है, तो उसे भगवान का विशेष प्रेम प्राप्त होता है। *जगदानंद पंडित का प्रेम और सेवा* जगदानंद पंडित का महाप्रभु के साथ प्रेमपूर्ण और कभी-कभी 'क्रोधित' व्यवहार एक अनूठा उदाहरण है। एक बार वे प्रभु के लिए सुगंधित तेल लाए, लेकिन सन्यास धर्म के कारण प्रभु ने उसे अस्वीकार कर दिया। क्रोध में आकर जगदानंद ने तेल का घड़ा तोड़ दिया और उपवास पर चले गए। महाप्रभु ने उनके इस प्रेमपूर्ण क्रोध को समझा और तीन दिन बाद स्वयं उनके पास जाकर भोजन पकाने का अनुरोध किया। जगदानंद ने बड़े प्रेम से भोजन बनाया और महाप्रभु ने सामान्य से दस गुना अधिक भोजन किया ताकि उनके भक्त का हृदय प्रसन्न हो सके। इस घटना का शुभ परिणाम यह हुआ कि जगदानंद का प्रेम और अधिक प्रगाढ़ हो गया। यह दिखाता है कि भगवान भक्त के बाहरी क्रोध के पीछे छिपे शुद्ध प्रेम को ही देखते हैं। *रघुनाथ भट्ट गोस्वामी की आज्ञाकारिता* रघुनाथ भट्ट गोस्वामी के माध्यम से महाप्रभु ने सिखाया कि माता-पिता की सेवा और गुरु की आज्ञा का पालन कैसे करना चाहिए। प्रभु ने उन्हें निर्देश दिया कि वे विवाह न करें, घर लौटकर अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करें और किसी शुद्ध वैष्णव से श्रीमद्भागवत का अध्ययन करें। रघुनाथ भट्ट ने इन आदेशों का पूर्णतः पालन किया। उन्होंने कई वर्षों तक अपने माता-पिता की सेवा की और भागवत का पाठ किया। उनकी इस निष्ठा का परिणाम यह हुआ कि बाद में जब वे वृन्दावन गए, तो वे महाप्रभु की कृपा से प्रेम में पूर्णतः सराबोर हो गए। उनकी आवाज़ इतनी मधुर हो गई कि जब वे भागवत पढ़ते थे, तो हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता था। यह प्रसंग सिद्ध करता है कि भगवान के निर्देशों का पालन करने से भक्त का चरित्र और आध्यात्मिक शक्ति निखरती है। *ओड़िया स्त्री की व्याकुलता और सहज प्रेम* एक बार जगन्नाथ मंदिर में भारी भीड़ के कारण एक ओड़िया स्त्री प्रभु जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर पा रही थी। अपनी व्याकुलता में वह गरुड़ स्तंभ पर चढ़ गई और अनजाने में अपना पैर महाप्रभु के कंधे पर रख दिया। जब प्रभु के सेवक ने उसे हटाने की कोशिश की, तो महाप्रभु ने उसे रोक दिया। महाप्रभु ने उस स्त्री के इस व्यवहार को अनुचित नहीं माना, बल्कि उसकी 'आरती' या तीव्र इच्छा की प्रशंसा की। प्रभु ने कहा कि काश उनके भीतर भी भगवान को देखने की ऐसी ही तड़प होती। इस प्रसंग का सकारात्मक संदेश यह है कि भगवान सामाजिक नियमों या शिष्टाचारों से अधिक भक्त की आंतरिक व्याकुलता और दर्शन की उत्कंठा को महत्व देते हैं।