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नमस्ते दोस्तों! इस वीडियो में हम स्वतंत्र भारत के इतिहास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय, "नियोजित विकास की राजनीति" (Politics of Planned Development) पर चर्चा करेंगे। आज़ादी के बाद भारत के सामने राष्ट्र-निर्माण और लोकतंत्र कायम करने के साथ-साथ तीसरी बड़ी चुनौती आर्थिक विकास की थी, ताकि सबकी भलाई सुनिश्चित की जा सके। इस वीडियो में आप जानेंगे: 1. विकास का अर्थ और राजनीतिक टकराव (Political Contradictions of Development): विकास का अर्थ समाज के अलग-अलग तबकों के लिए अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, ओडिशा में लौह-अयस्क के भंडार को लेकर हुए विवाद को देखें। जहाँ राज्य सरकार और इस्पात निर्माताओं के लिए यह पूंजी निवेश और रोजगार का अवसर था, वहीं आदिवासियों को विस्थापन और आजीविका छिनने का डर था। पर्यावरणविदों को प्रदूषण का भय था। ऐसे में यह सवाल उठता है कि विकास किसका हो? यह निर्णय केवल विशेषज्ञों का नहीं, बल्कि एक राजनीतिक निर्णय होना चाहिए जिसमें जनता के हितों को तौला जाए। 2. वामपंथ बनाम दक्षिणपंथ (Left vs Right Ideology): विकास की दिशा तय करने में विचारधाराओं की बड़ी भूमिका थी। 'वामपंथ' (Left) उन लोगों की ओर संकेत करता है जो गरीबों के पक्षधर हैं और अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण चाहते हैं, जबकि 'दक्षिणपंथ' (Right) खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है। आज़ादी के वक्त भारत में विकास के दो मॉडल थे—उदारवादी-पूंजीवादी मॉडल (अमेरिका) और समाजवादी मॉडल (सोवियत संघ)। नेहरू सहित कई भारतीय नेता सोवियत मॉडल से गहरे प्रभावित थे। 3. योजना आयोग और बॉम्बे प्लान (Planning Commission & Bombay Plan): आज़ादी के बाद यह सहमति बनी कि विकास का काम निजी हाथों में नहीं सौंपा जा सकता और सरकार को एक योजना बनानी होगी। दिलचस्प बात यह है कि 1944 में उद्योगपतियों के एक समूह ने 'बॉम्बे प्लान' तैयार किया था, जिसमें वे खुद चाहते थे कि सरकार औद्योगिक निवेश में बड़ा कदम उठाए। मार्च 1950 में भारत सरकार ने एक प्रस्ताव के जरिए 'योजना आयोग' की स्थापना की, जो एक सलाहकारी संस्था थी। अब इसके स्थान पर 'नीति आयोग' (NITI Aayog) आ गया है। 4. पंचवर्षीय योजनाएँ (Five Year Plans): • प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956): के.एन. राज जैसे अर्थशास्त्रियों ने इस योजना में "धीमी चाल" की वकालत की। इसमें सबसे ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र, बांधों और सिंचाई पर दिया गया, क्योंकि विभाजन से कृषि को गहरा धक्का लगा था। भाखड़ा-नांगल जैसी परियोजनाएं इसी दौर की देन हैं। • दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961): पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में बनी इस योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाए। इसका लक्ष्य तेज़ गति से संरचनात्मक बदलाव करना था। 5. मुख्य विवाद और विकल्प (Key Controversies & Alternatives): नियोजन के दौरान कृषि बनाम उद्योग का विवाद गहराया। कुछ आलोचकों का मानना था कि उद्योगों को प्राथमिकता देकर कृषि की अनदेखी की गई, जिससे खाद्यान्न संकट का खतरा बढ़ा। इसके विपरीत, केरल में विकास का एक अलग रास्ता चुना गया जिसे 'केरल मॉडल' कहते हैं। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि-सुधार और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वहां साक्षरता और स्वास्थ्य के मानक बेहतर रहे। इस वीडियो को अंत तक देखें और समझें कि कैसे इन फैसलों ने आज के भारत की नींव रखी। Like, Share और Subscribe करना न भूलें! #PoliticsOfPlannedDevelopment #IndianPolitics #FiveYearPlan #NitiAayog #Class12PoliticalScience #NCERT #IndianHistory #Economy