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Written and Composed by Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj Prem Ras Madira - Dainya Madhuri किशोरी ! मोरी अब न लगावो बार । माँगत भीख कृपा की केवल, खड़ो तिहारे द्वार । रसिकन-मुख अस सुनी 'दीन को, आदर येहि दरबार ।' 'देर होत अंधेर नहीं' बस, इहे रह्यो आधार । बेर भये जनि जानेहु 'तजिहौं, हौं जड़, हठी, गँवार।' कहिहौं नहिं 'कृपालु' काहू सों, आ जाइय इक बार ॥ भावार्थ- हे अलबेली राधिके ! अब देर न करो। मैं तुम्हारे द्वार पर खड़ा होकर केवल तुम्हारी कृपा की भिक्षा मांग रहा हूँ। महापुरुषों के मुख से सुना है कि तुम्हारे दरबार में दीनोंका सदा सम्मान हुआ करता है। फिर भी जो देर हो रही है इसे 'देर होती है अन्धेर नहीं', इस लोकोक्ति के अनुसार समझकर विश्वासपूर्वक आशा लगाये बैठा हूँ। किशोरीजी ! तुम्हारी कृपा पाने में कितनी ही देर क्यों न हो, पर तुम यह न समझना कि मैं देर होनेके कारण तुम्हारा अवलम्ब छोड़ दूंगा। क्योंकि मैं पक्का जड़, हठी एवं मूर्ख हूँ। "कृपालु' कहते हैं कि हे किशोरीजी ! तुम चुपके से आकर मुझे दर्शन दे जाओ । यदि तुम्हें यह भय हो कि तुम और लोगोंसे कह दोगे, तो मैं वचन देता हूँ कि मैं किसी से नहीं कहूँगा ।