У нас вы можете посмотреть бесплатно "शुद्धात्म तत्व चिंतन " ( मैं पथिक बनूँ पथ का ) । आध्यात्मिक जैन भजन । संगीतकार - प्राची जैन или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
Written By :- Shraman Muni Shri 108 Samatv Sagar Ji Maharaj रचयिता :- श्रमण मुनि श्री 108 समत्व सागर जी महाराज Singer : Prachi Jain गायिका : प्राची जैन Sponsor : Pankaj Jain Family (Saharanpur) पुण्यार्जक : पंकज जैन परिवार (सहारनपुर) Edited By : Saurabh Jain निज का जो सत् देखा, पर द्रव्य पर्यायों में। अत एव मैं भटका हूँ, भव भव पर्यायों में।। 1।। निज गुण पर्यायों को, ना जान सका अब तक। निज गुण ये जिन जैंसे, परयाय दृष्टी घातक ।। 2।। मदिरा मोह पान किया, निज को ना पहिचाना। जड़ चेतन का अंतर, ना अब तक था जाना।। 3।। अब भेद ज्ञान द्वारा, निज पर अंतर जाना। निज आत्म तत्व लखकर, निज शुद्धातम पाना।। 4।। भाऊँ उन भावों को, जो भाव नहीं भाया। तजता उन भावों को, अब तक भाता आया।। 5।। अब करता दृढ़ निश्चय, साधक ही साध्य बने। ज्ञेयों पर दृष्टी नहीं, अब ज्ञायक ध्येय बने।। 6।। संकल्प विकल्प सभी, ये राग और द्वेषज हैं। मैं शून्य स्वभावी हूँ, ये आश्रव बंधक हैं।। 7।। मैं षुद्ध बुद्ध ज्ञायक, संबंध नहीं पर से। निज की स्वतंत्र सत्ता, मैं वेद्य रहा निज से।। 8।। पर में तल्लीन रहा, अब बोध है हो आया। पद अविनश्वर पाने, मन अब है ललचाया।। 9।। आतम ने आतम को, निज आतम से ध्याया। शुद्धातम पद पाने, निज की ही शरण आया।। 10।। दुर्लभ से दुर्लभ है नर मुनि पद को पाना। परमाति दुर्लभ फिर, निज आत्म शरण आना।। 11।। स्व संवेदन को पा मुनिबन मुनिपन पाया। अब चाह करूँ तो क्या, भव तीर निकट आया।। 12।। आलौकिक वृत्ति मेरी, क्यों लौकिक दृष्टी रखूँ। होकर निवृत्त अब तो, निज पर हो दृष्टी रखूँ।। 13।। श्रद्धा निज आतम् की, संवेदन हो निज में। हो रमण सदा निज में, आराधक निज का मैं।। 14।। आराध्य बना स्व को, आराधक हर पल मैं। आराध्य आराधक भाव, क्षण क्षण में नशाऊँ मैं।। 15।। मैं पथिक बनूँ पथ का, जो पथ शाश्वत सुख का। पल पल है भाव यही, वह पथ हो सिद्धों का।। 16।। जिनने निज आतम से निज जिन को है ध्याया। परमातम पद तब पा, परमानंद उपजाया।। 17।। #आध्यात्मिकभजन #JainlatestBhajan #wondsrfuljainism #munishrisamatvsagarjibhajan #samatvvani #prachijainbhajan #spirituality #jainbhajansangrah #jainbhajan #songarhkebhajan #dhyan #samayik #meditation #yoga #concentration #jainism #jaindharam #satsang #jainmuni