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भगवद गीता अध्याय 7 – ज्ञान विज्ञान योग (Bhagavad Gita Chapter 7: Jnana Vijnana Yoga) में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सच्चे ज्ञान और अनुभवजन्य विज्ञान का अद्भुत संगम बताते हैं। यह अध्याय जीवन की गहराई को छूता है और हमें यह समझने का अवसर देता है कि ईश्वर कौन हैं, माया कैसे काम करती है, और सच्चा भक्त कैसा होता है। इस अध्याय में भगवान स्पष्ट कहते हैं कि वे ही सम्पूर्ण जगत के कारण, आधार और पालनकर्ता हैं। पाँच महाभूत—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के साथ-साथ मन, बुद्धि और अहंकार भी उन्हीं से उत्पन्न हुए हैं। जीवात्मा भी उन्हीं की शक्ति है, जो संसार को धारण करती है। श्रीकृष्ण यह बताते हैं कि यह जगत माया से ढँका हुआ है। यह माया तीन गुणों—सत्त्व, रज और तम—से बनी है और जीव को बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र में फँसा देती है। केवल वही साधक इस माया को पार कर सकता है, जो सच्चे प्रेम और श्रद्धा से भगवान की शरण लेता है। इस अध्याय में चार प्रकार के भक्तों का वर्णन है— दुखी भक्त (जो दुख दूर करने के लिए भगवान को याद करता है) इच्छावान भक्त (जो भौतिक सुख और लाभ के लिए प्रार्थना करता है) जिज्ञासु भक्त (जो सत्य और ज्ञान की तलाश करता है) ज्ञानी भक्त (जो केवल प्रेम से भगवान को भजता है, बिना किसी स्वार्थ के) भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इन सबमें सबसे श्रेष्ठ ज्ञानी भक्त है, जो निरंतर उनकी भक्ति में लीन रहता है और केवल भगवान को ही अपना साध्य मानता है। कृष्ण यह भी स्पष्ट करते हैं कि देवताओं की पूजा भी अंततः उन्हीं तक पहुँचती है, लेकिन देवताओं के उपासक सीमित और अस्थायी फल पाते हैं। जबकि कृष्ण की सीधी भक्ति करने वाला भक्त शाश्वत और अमर फल प्राप्त करता है। भगवान प्रेम का महत्व बताते हुए कहते हैं—“जो कोई मुझे प्रेम से एक पत्ता, एक फूल, एक फल या जल अर्पित करता है, मैं उसे स्वीकार करता हूँ।” इसका अर्थ है कि भक्ति में बाहरी वस्तु की महत्ता नहीं, बल्कि भावना की महत्ता है। ज्ञान विज्ञान योग का सार यह है कि ज्ञान (शास्त्रीय समझ) और विज्ञान (अनुभव) जब भक्ति के साथ जुड़ जाते हैं, तभी आत्मा परमात्मा से एकाकार हो जाती है। इस वीडियो में आपको मिलेगा— माया और त्रिगुणों का रहस्य भक्तों के चार प्रकार और उनकी भक्ति देवताओं की पूजा और कृष्ण की भक्ति में अंतर भक्ति की सरलता और सच्चा प्रेम ज्ञानी भक्त की महिमा और मुक्ति का मार्ग अगर आप जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझना चाहते हैं और सच्ची शांति, प्रेम और मुक्ति की तलाश में हैं, तो भगवद गीता अध्याय 7 – ज्ञान विज्ञान योग का यह उपदेश आपके लिए दिव्य मार्गदर्शन है। 🕉️ याद रखना—जो प्रेम से भगवान की शरण में आता है, वही इस दुख-सागर से पार होकर अमर आनंद को प्राप्त करता है। 🔖 Disclaimer - The content on Dharma Decode is intended for educational, inspirational, and spiritual enrichment purposes only. We explore ancient Hindu scriptures, teachings from the Bhagavad Gita, Upanishads, Ramcharitmanas, and other dharmic texts to promote timeless wisdom, inner peace, and conscious living. We do not claim to represent any religious organization or official authority. Interpretations shared on this channel are derived from personal study, reflection, and traditional commentaries, and are not meant to replace professional advice—spiritual, psychological, medical, or otherwise. Viewer discretion is advised. Respect for all beliefs is encouraged. All visuals and voiceovers are either original, licensed, or used under fair use for commentary and transformative purposes. All rights reserved © Dharma Decode.