У нас вы можете посмотреть бесплатно रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 27 - नारद मुनि का कंस को भगवान विष्णु की शरण में जाने का सुझाव или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 27 - Narada Muni advised Kansa to go to the shelter of Lord Vishnu श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठा लेने की सूचना मथुरा नरेश कंस तक पहुँचती है। उसे विश्वास नहीं होता है कि कोई मानव अपनी उँगली पर पर्वत उठा सकता है। वो दरबारियों से कहता है कि पूर्वकाल में हनुमान अपने हाथों से पहाड़ उखाड़ कर ले आये थे। किन्तु हनुमान मानव नहीं, वानर थे। इस पर कंस का एक मंत्री चाणुर कहता है कि कृष्ण द्वारा पर्वत उठाना एक अफवाह है जो देवताओं द्वारा एक षडयन्त्र के तहत फैलायी जा रही है। आकाशवाणी के अनुसार विष्णु अवतार को बड़ा होने तक छिपा कर रखा जाना है। इसलिये देवताओं ने षडयन्त्र रचा है कि महाराज कंस कृष्ण के विष्णु अवतार होने के भ्रम में उसके पीछे लग जाऐं और असली विष्णु अवतार कहीं छिप कर बड़ा होता रहे। बाणासुर भी चाणुर की बात का समर्थन करता है। कंस को विश्वास हो जाता है कि कृष्ण विष्णु अवतार नहीं बल्कि एक सामान्य बालक है। इसी समय नारद मुनि कंस के महल में आते हैं और उसे समझाते हैं कि अष्टभुजा देवी ने उसे मारने के लिये जिस बालक के जन्म लेने की भविष्यवाणी की थी, कृष्ण वही अवतारी बालक हैं। कंस को अपना पथ सुधार कर भगवान की शरण में चले जाना चाहिये। कालिया नाग को नाथने वाला और गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले श्रीकृष्ण को कंस साधारण बालक समझने की भूल न करे। इस पर बाणासुर कहता है कि कृष्ण के कारनामे गोकुल के साधारण ग्वाल बालों का दृष्टिभ्रम है। नारद एक बार पुनः कंस से कहते हैं कि आपने अपनी मृत्यु के भय से एक बार मथुरा के सभी नवजात शिशुओं को मार डालने का आदेश दिया था। और इस भय से आप हर रोज जीते मरते हैं। इस भय से बाहर निकलने का एक ही मार्ग है कि आप सच्चिदानन्द प्रभु की शरण में चले जायें। नारद मुनि कंस को यह भी बताते हैं कि स्वयं भगवान विष्णु ऐसा कहने के लिये मुझे आपके के पास भेजा है। तब बाणासुर कंस को भड़काते हुए कहता है कि विष्णु ने यह चाल कंस को एक निरीह प्राणी की भाँति अपनी शरण में लाने के लिये चली है। वे नारद मुनि का अपमान कर वापस भेज देते हैं। नारद क्षीर सागर में भगवान विष्णु के समक्ष उपस्थित होते हैं और कंस के अहंकार के बारे में बताते हैं। विष्णु इसे महामाया का खेल बताते हैं और कहते हैं कि मायामाया जो खेल कर रही हैं, उन्हें करने दो। आकाश में महामाया भी भगवान की बात सुनकर खिलखिलाती हैं। नारद प्रभु के समक्ष अपनी चिन्ता व्यक्त करते हैं कि कहीं कंस देवकी और वसुदेव को यातनाऐं देना बढ़ा न दे। तब विष्णु नारद के इस भोलेपन पर मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि उनकी रक्षा स्वयं उनका धर्म कर रहा है। उधर एक दिन अक्रूर अपना वेश बदलकर वसुदेव और देवकी को भोजन देने के बहाने कारागार में जाते हैं। वह उन दोनों को बेड़ियों में जकड़ा देखकर दुखी होते हैं। वह उन्हें बताते हैं कि बलराम को बड़ा होकर राजा बनना है, इस कारण उसकी माता रोहणी उसे शस्त्र और शास्त्र विद्या में निपुण करना चाहती हैं। किन्तु नन्दबाबा श्रीकृष्ण को शिक्षा दिलाना नहीं चाहते हैं। उनका मत है कि श्रीकृष्ण को तो गो पालक बनना है तो इसमें पढ़ाई लिखाई का क्या काम। यह बात सुनकर देवकी अपने पुत्र कृष्ण की शिक्षा के बारे में चिन्तित हो उठती हैं। तब अक्रूर कहते हैं कि कृष्ण के कारनामों से कंस भी अचम्भे में हैं और ऐसे में साधारण ग्वालबाला बने रहने में ही उनका हित है। समस्त मंत्रणा के बाद वसुदेव अपना निर्णय सुनाते हैं कि बलराम गोकुल रहकर चुपचाप शिक्षा ग्रहण करें और कृष्ण गैया चरायें। माता देवकी इस निर्णय से प्रसन्न होती हैं और कहती हैं कि उनका कान्हा तो अनपढ़ रहकर मुरली बजाता ही अच्छा रहेगा। गोलोक धाम में देवी राधा के साथ विराजमान भगवान कृष्ण इस सारे वार्तालाप को सुनते हैं और कहते हैं कि माता देवकी के निर्णय ने उन्हें धरती पर गुरुओं के डण्डे खाने से बचा लिया। राधा उनसे पूछती हैं कि आखिर वे अपनी जननी को इस प्रकार क्यों दुख दे रहे हैं और अपनी बाललीला का सारा सुख केवल दूसरी माता यशोदा के हिस्से में क्यों डाल रहे हैं। तब कृष्ण कहते हैं कि यह माता देवकी के दुख नहीं बल्कि उनके तप का शेष भाग है। इसके पश्चात कृष्ण उन्हें यशोदा और नन्दराय के पूर्व जन्म की कथा सुनाते हैं कि उन्होंने तप करके भगवान विष्णु की बाल लीला देखने का आशीर्वाद माँगा था। तब उन्हें वरदान मिला था कि द्वापर युग में वे दोनों गोकुल में यशोदा और नन्द के रूप में जन्म लेगें तब उन्हें भगवान विष्णु के बालरूप का लालन पालन का अवसर मिलेगा। इसके बाद नारद मुनि कृष्ण के कारागार में जन्म लेने और उनकी बाल लीलाओं से जुड़ी घटनाओं को भक्ति गीत के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर Chief Asst. Director - Yogee Yogindar मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar सहायक निर्देशक - राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर Screenplay & Dialogues - Ramanand Sagar पटकथा और संवाद - संगीत - रामानन्द सागर Camera - Avinash Satoskar कैमरा - अविनाश सतोसकर Music - Ravindra Jain संगीत - रविंद्र जैन Lyrics - Ravindra Jain गीत - रविंद्र जैन Playback Singers - Suresh Wadkar / Hemlata / Ravindra Jain / Arvinder Singh / Sushil पार्श्व गायक - सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील Editor - Girish Daada / Moreshwar / R. Mishra / Sahdev संपादक - गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव In association with Divo - our YouTube Partner #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna"