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सौरमंडल (Solar System) सौरमंडल ब्रह्मांड की एक अत्यंत महत्वपूर्ण संरचना है, जिसमें हमारा ग्रह पृथ्वी स्थित है। यह न केवल खगोल विज्ञान का आधारभूत विषय है, बल्कि मानव सभ्यता के वैज्ञानिक विकास से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। सौरमंडल सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे अनेक खगोलीय पिंडों का एक सुव्यवस्थित तंत्र है। इसमें सूर्य, आठ ग्रह, उनके उपग्रह, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, उल्काएँ और अन्य अंतरिक्षीय पदार्थ शामिल हैं। सूर्य : सौरमंडल का केंद्र सूर्य सौरमंडल का हृदय और ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। यह एक विशाल गैसीय तारा है, जो मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। सूर्य में निरंतर नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) की प्रक्रिया चलती रहती है, जिसमें हाइड्रोजन परमाणु हीलियम में परिवर्तित होकर अपार ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। यही ऊर्जा प्रकाश और ऊष्मा के रूप में पूरे सौरमंडल में फैलती है। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल इतना शक्तिशाली है कि वह सभी ग्रहों को अपनी-अपनी कक्षाओं में बनाए रखता है। यदि सूर्य न हो, तो न तो पृथ्वी पर जीवन संभव होता और न ही सौरमंडल का अस्तित्व। ग्रहों का वर्गीकरण सौरमंडल में कुल आठ ग्रह हैं, जिन्हें दो मुख्य वर्गों में बाँटा जाता है— 1. आंतरिक (स्थलीय) ग्रह ये ग्रह सूर्य के अपेक्षाकृत निकट स्थित हैं और चट्टानी सतह वाले हैं। बुध (Mercury) – सूर्य के सबसे निकट और सबसे छोटा ग्रह। यहाँ दिन अत्यधिक गर्म और रात अत्यधिक ठंडी होती है। शुक्र (Venus) – पृथ्वी के समान आकार का, लेकिन घना वायुमंडल और तीव्र ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण सबसे गर्म ग्रह। पृथ्वी (Earth) – सौरमंडल का एकमात्र ज्ञात ग्रह जहाँ जीवन पाया जाता है। जल, उपयुक्त तापमान और वायुमंडल इसकी विशेषताएँ हैं। मंगल (Mars) – लाल ग्रह कहलाता है। यहाँ जल के प्राचीन प्रमाण मिले हैं, इसलिए भविष्य में मानव उपनिवेश की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं। 2. बाह्य (गैसीय) ग्रह ये ग्रह आकार में विशाल हैं और मुख्यतः गैसों से बने हैं। बृहस्पति (Jupiter) – सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह। इसका विशाल गुरुत्वाकर्षण कई क्षुद्रग्रहों से पृथ्वी की रक्षा करता है। शनि (Saturn) – अपनी सुंदर वलयों (Rings) के लिए प्रसिद्ध। अरुण (Uranus) – अपनी धुरी पर लगभग लेटा हुआ घूमता है। वरुण (Neptune) – सबसे दूर स्थित ग्रह, जहाँ अत्यंत तीव्र पवनें चलती हैं। उपग्रह (Moons) ग्रहों के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड उपग्रह कहलाते हैं। पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चंद्रमा है, जो ज्वार-भाटा और पृथ्वी की स्थिरता में सहायक है। बृहस्पति और शनि के दर्जनों उपग्रह हैं, जिनमें गैनिमीड, यूरोपा, और टाइटन वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और उल्काएँ क्षुद्रग्रह (Asteroids) – मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित क्षुद्रग्रह पेटी में पाए जाते हैं। धूमकेतु (Comets) – बर्फ, धूल और गैस से बने पिंड, जो सूर्य के पास आने पर चमकदार पूँछ बनाते हैं। उल्काएँ (Meteoroids) – जब ये पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो जल उठते हैं, जिन्हें हम टूटते तारे कहते हैं। काइपर बेल्ट और ऊर्ट मेघ वरुण के परे स्थित काइपर बेल्ट में बर्फीले पिंड पाए जाते हैं, जिनमें प्लूटो भी शामिल है (अब बौना ग्रह)। इससे भी दूर ऊर्ट मेघ माना जाता है, जो दीर्घकालिक धूमकेतुओं का स्रोत है। सौरमंडल की उत्पत्ति वैज्ञानिकों के अनुसार सौरमंडल की उत्पत्ति लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले एक विशाल गैस और धूल के बादल (Nebula) से हुई। गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से सूर्य का निर्माण हुआ और शेष पदार्थों से ग्रह व अन्य पिंड बने। इसे नीहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis) कहा जाता है। मानव जीवन और सौरमंडल सौरमंडल के अध्ययन ने मानव को समय, मौसम, कैलेंडर और दिशा-ज्ञान प्रदान किया। आधुनिक युग में अंतरिक्ष अभियानों, उपग्रहों, GPS और मौसम पूर्वानुमान में सौरमंडल का ज्ञान अत्यंत उपयोगी है। भारत के चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशन इस दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। निष्कर्ष सौरमंडल केवल खगोलीय पिंडों का समूह नहीं, बल्कि जीवन, ऊर्जा और संतुलन का एक अद्भुत तंत्र है। इसके अध्ययन से न केवल ब्रह्मांड की संरचना को समझने में सहायता मिलती है, बल्कि पृथ्वी और मानव जीवन के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा भी मिलती है। सौरमंडल का रहस्य आज भी वैज्ञानिकों को आकर्षित करता है और आने वाले समय में इसके और भी नए आयाम सामने आएँगे।