У нас вы можете посмотреть бесплатно कर्म करते हुए भी मुक्त कैसे रहें?अगर जीवन में कन्फ्यूजन है तो यह वीडियो ज़रूर देखें |श्लोक41–42 или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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इस विशेष वीडियो में Dr. Mukesh Aggarwal हमें श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 के श्लोक 41 और 42 के माध्यम से यह सिखाते हैं कि 👉 कर्म करते हुए भी मन को कैसे मुक्त रखा जाए, 👉 संदेह (Doubt) को कैसे समाप्त किया जाए, 👉 और ज्ञान के द्वारा जीवन को कैसे ऊँचाई तक पहुँचाया जाए। ये श्लोक आज के समय में करियर, बिज़नेस, रिलेशनशिप और आत्म-विकास के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। 🕉️ श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 4, श्लोक 41 🔸 श्लोक (Original Sanskrit) योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम् | आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय || 41 || 🔸 श्लोक का अर्थ : हे अर्जुन! जिस व्यक्ति ने योग के द्वारा कर्मों का त्याग नहीं, बल्कि कर्मों से आसक्ति का त्याग कर दिया है, जिसके सभी संदेह ज्ञान के द्वारा नष्ट हो चुके हैं, और जो आत्म-नियंत्रण में स्थित है, उसे कर्म कभी बाँध नहीं सकते। 👉 संदेश: कर्म छोड़ना समाधान नहीं है, कर्म करते हुए आसक्ति और भ्रम छोड़ना ही सच्चा योग है। 🕉️ श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 4, श्लोक 42 🔸 श्लोक (Original Sanskrit) तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनाऽऽत्मनः | छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत || 42 || 🔸 श्लोक का अर्थ (Hindi Meaning) इसलिए हे भारत (अर्जुन)! अपने हृदय में स्थित अज्ञान से उत्पन्न संदेह को ज्ञान की तलवार से काट दो, और योग में स्थित होकर उठ खड़े हो, अपने कर्तव्य पथ पर निडर होकर आगे बढ़ो। 👉 संदेश: जब तक मन में संदेह है, तब तक निर्णय और सफलता दोनों अधूरे रहते हैं। ज्ञान + कर्म = जीवन की विजय। 🌟 Dr. Mukesh Aggarwal की सीख ✔ कर्म करो, पर अहंकार और आसक्ति के बिना ✔ ज्ञान से अपने डर और संदेह को समाप्त करो ✔ आत्म-नियंत्रण ही सच्ची शक्ति है ✔ योग केवल साधना नहीं, जीवन जीने की कला है 📌 अगर यह वीडियो आपको आत्म-ज्ञान और जीवन की सही दिशा देता है, तो 👉 Like करें | Share करें | Channel को Subscribe करें 👉 और कमेंट में लिखें: “इस श्लोक से आपने क्या सीखा?”