У нас вы можете посмотреть бесплатно ज्ञान, गुरु और विश्वास का महत्व| गुरु के बिना ज्ञान अधूरा क्यों?श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक34–40 или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
इस दिव्य प्रवचन में Dr. Mukesh Aggarwal श्रीमद् भगवद् गीता के अध्याय 4 (ज्ञान योग) के श्लोक 34 से 40 तक का रहस्य सरल भाषा में समझा रहे हैं। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान, गुरु-शरणागति, श्रद्धा, विश्वास, आत्मसात् और कर्म–बंधन से मुक्ति के गूढ़ रहस्य बताते हैं। 👉 कौन गुरु वास्तविक है? 👉 ज्ञान से मानव कैसे मुक्त होता है? 👉 श्रद्धा और विश्वास ज्ञान को कैसे फलीभूत करते हैं? 👉 कौन ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाएगा? इन सभी प्रश्नों का आध्यात्मिक समाधान इस वीडियो में प्रस्तुत है। आज के समय में, जब भ्रम और संशय बढ़ रहा है, इन श्लोकों का संदेश हमें अहंकार-मुक्त होकर गुरु से ज्ञान ग्रहण करने और आत्म-शुद्धि की ओर ले जाता है। संदेश: ज्ञान हमें केवल सूचना नहीं देता, बल्कि मोक्ष, मुक्ति और आत्मिक शांति की ओर ले जाता है। 🕉️ जय श्री कृष्ण 🕉️ हरि ॐ तत्सत् 📌 श्लोक एवं अर्थ 📍 श्लोक 34 तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।। अर्थ: जिस तत्वज्ञान को समझना है उसे गुरु के पास समर्पण, विनम्र सेवा और प्रश्नों द्वारा जानो। सत्य को देखने वाले ज्ञानी गुरु तुम्हें वह ज्ञान प्रदान करेंगे। 📍 श्लोक 35 यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव। येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि।। अर्थ: इस ज्ञान को प्राप्त कर लेने पर तुम फिर कभी मोह में नहीं पड़ोगे। तुम्हें सभी प्राणी आत्मा और परमात्मा रूप में दिखाई देंगे। 📍 श्लोक 36 अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः। सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।। अर्थ: यदि तुम संसार के सबसे बड़े पापी भी हो, तो भी ज्ञान रूपी नौका तुम्हारे सारे पाप और दु:खों को पार कराएगी। 📍 श्लोक 37 यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन। ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा।। अर्थ: जैसे भड़का हुआ अग्नि लकड़ियों को जलाकर राख कर देती है, उसी प्रकार ज्ञान की अग्नि सभी कर्मों के फल को जला देती है। 📍 श्लोक 38 न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विंदति।। अर्थ: इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं। समय के साथ योगी इसे अपने अंत:करण में अनुभव करता है। 📍 श्लोक 39 श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।। अर्थ: श्रद्धा रखने वाला, इंद्रियों को संयमित करने वाला व्यक्ति ज्ञान पाता है। ज्ञान प्राप्त कर वह शीघ्र ही अत्यंत शांति प्राप्त करता है। 📍 श्लोक 40 अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति। नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।। अर्थ: जो अज्ञानी है, विश्वासहीन है और संदेह में डूबा रहता है, वह न इस लोक में सुख पाता है न परलोक में। 👉 पूरी व्याख्या सुनने के लिए वीडियो पूरा देखें। 👉 आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन के गूढ़ सत्य को समझने के लिए चैनल सब्सक्राइब करें। 📌 Dr. Mukesh Aggarwal (World’s 1st Ayurveda Hair & Skin Clinic | Trichologist | Author | Motivational Speaker)