У нас вы можете посмотреть бесплатно श्री कृष्ण भाग 100 - सुदामा और श्री कृष्ण की मित्रता । रामानंद सागर कृत или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 100 - Sudama and Shri Krishna Ki Mitrata. श्रीकृष्ण का बालसखा सुदामा नित्य की भाँति भिक्षा माँगने निकलता है। उसे एक दो घर से ही मुठ्ठी भर अनाज मिलता है और अधिकांश घरों से तिरस्कार। सुदामा इतना कम पाकर भी प्रभु को धन्यवाद देता है। यह देखकर देवी रुक्मिणी श्रीकृष्ण से पूछती हैं कि आप सर्वशक्तिमान होकर भी अपने भक्त की सहायता क्यों नहीं कर रहे हैं। श्रीकृष्ण स्थिति स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि सुदामा भक्त होने के अतिरिक्त इस जन्म में मेरा मित्र है, इस कारण वह मुझसे कुछ भी माँगने में संकोच कर रहा है। वह देवी रुक्मिणी को संदीपनि ऋषि के आश्रम का एक प्रसंग सुनाते हैं। जब श्रीकृष्ण गुरु सन्दीपनि से शिक्षा ग्रहण करने गये थे तब उन्होंने सरल स्वभाव के सुदामा को अपना मित्र बनाया था। सुदामा ने कहा था कि मैं निर्धन ब्राह्मण कुमार हूँ। मित्र के प्रति जो उत्तरदायित्व होते हैं, सम्भवतः मैं उनका निर्वाह नहीं कर पाऊँगा। उस समय श्रीकृष्ण सुदामा को वचन दिया था कि तुम्हें मेरे लिये कुछ नहीं करना होगा, भविष्य में जब भी आवश्यकता होगी, मित्रधर्म का मैं ही निर्वाह करूँगा। इस प्रसंग को सुनने के बाद देवी रुक्मिणी सुदामा की मदद करने की अनुमति श्रीकृष्ण से लेती और एक गृहिणी के हृदय में दयाभाव जागृत करती हैं। वह गृहिणी सुदामा को दोने भर खीर देती है और कहती है कि आज पूर्णिमा होने के कारण घर में खीर बनी है। तुम भी आज अपने बच्चों को खीर खिलाना। सुदामा खीर मिलने पर पुनः श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए घर को चलता है। मार्ग में एक बिदका हुआ घोड़ा उसे टक्कर मारता है। सुदामा के हाथों से गिरकर खीर मार्ग पर बिखर जाती है और एक कुत्ता आकर उनके सामने ही सारी खीर चाट जाता है। यह दृश्य देखकर रुक्मिणी के मुख से निकलता है कि ये क्या हो गया, प्रभु। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यही प्रारब्ध की देवी का कमाल है। आपने सुदामा को उसके प्रारब्ध से अधिक दिलाया, प्रारब्ध की देवी ने उसे मिट्टी में मिला दिया। वास्तव में यह खीर उस कुत्ते के प्रारब्ध की थी जो उसे सुदामा के माध्यम से मिल गयी। और उस स्त्री को एक ब्राह्मण को खीर देने का पुण्य तो मिल गया किन्तु सुदामा को खीर नहीं मिली। सुदामा की कुटिया में उसके बच्चे भूखे हैं। सुदामा इसे अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का फल बताते है। तब एक पतिव्रता स्त्री की भाँति वसुंधरा कहती है कि आप भगवान श्रीकृष्ण से कहिये, आपके और बच्चों के पापकर्मों का फल मेरे हिस्से में डाल दें। बस वे आपको और मेरे बच्चों को दो जून का भोजन देते रहें। अगले दिन जब सुदामा भिक्षा माँगने निकलता है तो मार्ग उसे पुराना मित्र चक्रधर मिलता है। सुदामा और चक्रधर कभी साथ में भिक्षा माँगने जाया करते थे किन्तु आज चक्रधर पालकी पर चलता है जिसे चार कहार ढोते हैं। चक्रधर सुदामा से कहता है कि मैंने यह सब राजा के दरबार में हाथ फैलाकर पाया है। तुम भी राजा के दरबार में जाकर उसका गुणगान करो और दक्षिणा में स्वर्ण मुद्राएं पाओ। सुदामा कहता है कि ब्राह्मण का धर्म लोगों को भक्ति मार्ग दिखाना है, राजा का गुणगान करना नहीं। ब्राह्मण राजा का पुरोहित बनकर उन्हें शिक्षा तो दे सकता है किन्तु गुणगान नहीं कर सकता, इससे उसका ब्राह्मणत्व नष्ट हो जायेगा। चक्रधर सुदामा की बातों से रुष्ट होकर अपने मार्ग पर चला जाता है। उस दिन भिक्षा में मिले अन्न को वसुंधरा पकाकर भोजन बनाती है और सबको परोसती है। ठीक उसी समय घर के बाहर गाय रम्भाती है। सुदामा अपने भोजन का आधा भाग उसे खिला देता है। इसके बाद उनके द्वार पर एक भिक्षुक आ जाता है। सुदामा अपना शेष भोजन में मिलाकर भिक्षुक को दे आता है और अपना पेट पानी पीकर भरता है। श्रीकृष्ण को धन्यवाद देकर सुदामा कहता है कि मेरा भोजन हो गया। उधर द्वारिकाधीश अपने महल में भोजन करने बैठते हैं। तभी उन्हें सुदामा के भूखे होने का अहसास होता है। वह दुखी होकर अपना ग्रास वापस थाली में रख देते हैं और कहते हैं कि मेरा पेट भर गया। रुक्मिणी कुछ-कुछ समझ जाती हैं किन्तु पूछती हैं कि असली बात क्या है, प्रभु। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब मेरा भक्त भोजन नहीं कर सका है तो मैं कैसे कर सकता हूँ। तीनो रानियों का श्रीकृष्ण से एक ही प्रश्न है कि सुदामा मित्र होकर आपसे सहायता क्यों नहीं माँगते। श्रीकृष्ण कहते हैं कि उसके मन में शंका है कि जो कृष्ण उसका बालसखा है, अब वो द्वारिकाधीश हो जाने के बाद गरीब सुदामा को पहचानेगा या नहीं। Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर Chief Asst. Director - Yogee Yogindar मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar सहायक निर्देशक - राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर Screenplay & Dialogues - Ramanand Sagar पटकथा और संवाद - संगीत - रामानन्द सागर Camera - Avinash Satoskar कैमरा - अविनाश सतोसकर Music - Ravindra Jain संगीत - रविंद्र जैन Lyrics - Ravindra Jain गीत - रविंद्र जैन Playback Singers - Suresh Wadkar / Hemlata / Ravindra Jain / Arvinder Singh / Sushil पार्श्व गायक - सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील Editor - Girish Daada / Moreshwar / R. Mishra / Sahdev संपादक - गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव Cast / पात्र Sarvadaman D. Banerjee सर्वदमन डी. बनर्जी Swapnil Joshi स्वप्निल जोशी Ashok Kumar अशोक कुमार बालकृष्णन Deepak Deulkar दीपक डेओलकर Sanjeev Sharma संजीव शर्मा Pinky Parikh पिंकी पारिख Reshma Modi रेशमा मोदी In association with Divo - our YouTube Partner #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna