У нас вы можете посмотреть бесплатно श्री कृष्ण भाग 99 - श्री कृष्ण के परम भक्त सुदामा की कथा । रामानंद सागर कृत или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 99 - Shri Krishna Ke Param Bhakt Sudama Ki Katha अगर आज भी संसार में मित्रता की मिसाल देनी हो तो कृष्ण और सुदामा का नाम लिया जाता है। श्रीकृष्ण जब गुरु संदीपनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने गये थे, वहीं उनकी सुदामा से भेंट हुई थी और उन्होंने सुदामा को अपना मित्र बनाया था। श्रीकृष्ण एक राजकुमार थे तो सुदामा निर्धन ब्राह्मण पुत्र। कालान्तर में श्रीकृष्ण द्वारिकाधीश बन गये किन्तु सुदामा की दशा में कोई परिवर्तन नहीं आया। वह दरिद्र ही बना रहा। विवाह के बाद सुदामा का परिवार और बढ़ा तो उसकी दरिद्रता भी बढ़ गयी। बावजूद इसके वह कभी अपने राजा मित्र से कुछ नहीं माँगने गया। भूखे पेट रहकर भी वह केवल श्रीकृष्ण के नाम की माला जपता था। श्रीमद्भागवत महापुराण में महर्षि वेदव्यास ने लिखा है कि सुदामा ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण था। वह जानता था कि उसकी विपन्नता उसके पूर्व जन्म के कर्मो का फल है, उसे भोगे बिना मुक्ति नहीं मिल सकती। इसलिये वह धीरज के साथ अपनी गरीबी को भोग रहा था किन्तु उसकी पत्नी वसुंधरा बहुत जोर देती थी कि जिन्हें तुम त्रिलोकी नाथ कहते हो और अगर वो तुम्हारे मित्र हैं तो उनसे सहायता क्यों नहीं माँगते। किन्तु सुदामा के कृष्ण से दो रिश्ते थे। एक भक्त का और दूसरा मित्र का। सुदामा का मत था कि भक्त तो अपने भगवान से कुछ भी माँग सकता है किन्तु मित्र के द्वार कभी हाथ नहीं फैलाने चाहिये। द्वारिका में एक रात देवी रुक्मिणी अनुभव करती हैं कि श्रीकृष्ण की मुरली में वेदना के स्वर गूँज रहे हैं। श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि इस संसार की माया ने मेरे एक बालसखा को दुखों में जकड़ रखा है और मेरी विवशता है कि मैं उसका दुख दूर नहीं कर सकता। सुदामा ब्रह्मज्ञानी है। वह जानता है कि पिछले कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। चाहे यह कर्म दुख हों या सुख हो। इसलिये वह अपनी दरिद्रता को निरासक्त भाव से भोग रहा है। सुदामा को दो दिन बहुत कम भिक्षा मिलती है। बच्चों को आधा पेट भोजन करा कर पति पत्नी ने कुछ नहीं खाया है। सुदामा को एक बर्तन में चावल का एक दाना मिलता है। वह बड़े जतन से इसके दो टुकड़े करता है। वह इसका एक भाग अपनी पत्नी वसुंधरा के खाने के लिये रखता है और अपने हिस्से का आधा चावल भगवान के भोग में अर्पण कर देता है। यह देखकर वसुंधरा कहती है कि जहाँ बड़े-बड़े सेठ सोने चाँदी के बर्तनों में छप्पन भोग लगाते हैं वहाँ एक निर्धन ब्राह्मण का भेंट किया हुआ चावल का आधा दाना श्रीकृष्ण को कहाँ दिखायी देगा। सुदामा कहते हैं कि प्रभु के यहाँ सोने चाँदी और छप्पन भोग का कोई मोल नहीं है। वहाँ केवल श्रद्धा और भक्ति का मोल है। वसुंधरा अपने पति के इस समर्पण भाव को समझ जाती है और अपने हिस्से का आधा चावल सुदामा की ओर बढ़ाते हुए कहती है कि यदि ऐसा है तो मेरे हिस्से का आधा चावल भी उन्हें चढ़ा दो। सुदामा वसुंधरा से पूछते हैं कि क्या तुम नहीं खाओगी। तुम्हें भूख नहीं लगी है। वसुंधरा कहती हैं कि जिसके पति को भूख नहीं लगती है, उसकी पत्नी को कैसे भूख लग सकती है। सुदामा वसुंधरा से कहते हैं कि प्रभु को अर्पण करना है तो अपने हाथों से करो, परन्तु श्रद्धा और भक्ति के साथ। इसके बाद सुदामा और वसुंधरा अपना अपना आधा चावल श्रीहरि और लक्ष्मी जी की प्रतिमा के समक्ष अर्पण करते हैं। प्रभु अपने भक्त के भोग को स्वीकार करते हैं और चावल के दोनों टुकड़े श्रीकृष्ण की दोनों हथेलियों में पहुँचते हैं। श्रीकृष्ण एक हथेली देवी रुक्मिणी की ओर बढ़ाते हुए कहते हैं कि लीजिये, आपके हिस्से का भी आ गया। देवी रुक्मिणी चावल के टुकड़े को उठाती हैं। श्रीकृष्ण उनसे कहते हैं कि आगे चलकर आपका इसका दाम चुकाना पड़ेगा। श्रीकृष्ण अपने हिस्से का चावल मुख में रखते हुए कहते हैं कि इसमें विश्व की समस्त आत्माएं सन्तुष्ट हों। देवी रुक्मिणी भी अपने पति का अनुसरण करती हैं। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी द्वारा चावल का आधा दाना खाते ही देवलोक और पृथ्वी लोक के समस्त देवताओं और प्राणियों का पेट भर जाता है। सुदामा और उनकी पत्नी वसुंधरा की क्षुधा भी शान्त होती है। अगले दिन सुदामा नित्य की भाँति भिक्षा माँगने निकलते हैं। उन्हें एक दो घर से ही मुठ्ठी भर अनाज मिलता है और अधिकांश घरों से तिरस्कार। सुदामा इतना कम पाकर भी प्रभु का धन्यवाद अदा करते हैं। श्रीकृष्ण देवी रुक्मिणी से कहते हैं कि देखो, सुदामा इतने कम में भी सन्तुष्ट होकर मेरे प्रति कृज्ञतता व्यक्त कर रहा है, जैसे मैंने उसपर असीम कृपा कर दी हो। हालाँकि यह उसके अपने कर्मों से कमाया हुआ प्रारब्ध है। Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर Chief Asst. Director - Yogee Yogindar मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar सहायक निर्देशक - राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर Screenplay & Dialogues - Ramanand Sagar पटकथा और संवाद - संगीत - रामानन्द सागर Camera - Avinash Satoskar कैमरा - अविनाश सतोसकर Music - Ravindra Jain संगीत - रविंद्र जैन Lyrics - Ravindra Jain गीत - रविंद्र जैन Playback Singers - Suresh Wadkar / Hemlata / Ravindra Jain / Arvinder Singh / Sushil पार्श्व गायक - सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील Editor - Girish Daada / Moreshwar / R. Mishra / Sahdev संपादक - गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव Cast / पात्र Sarvadaman D. Banerjee सर्वदमन डी. बनर्जी Swapnil Joshi स्वप्निल जोशी Ashok Kumar अशोक कुमार बालकृष्णन Deepak Deulkar दीपक डेओलकर Sanjeev Sharma संजीव शर्मा In association with Divo - our YouTube Partner #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna