У нас вы можете посмотреть бесплатно श्री चंडी देवी मंदिर हरिद्वार | आदिशक्ति जगदम्बा | माँ चंडिका | सिद्धपीठ मंदिर | 4K | दर्शन 🙏 или скачать в максимальном доступном качестве, видео которое было загружено на ютуб. Для загрузки выберите вариант из формы ниже:
Если кнопки скачивания не
загрузились
НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если возникают проблемы со скачиванием видео, пожалуйста напишите в поддержку по адресу внизу
страницы.
Спасибо за использование сервиса ClipSaver.ru
“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मंगलचण्डिके ऐं क्रौं फट् स्वाहा” भक्तों इस मंत्र को सिर्फ एक बार ही पूरे ह्रदय से बोलने में जितनी शक्ति की अनुभूति होती है. उतनी ही शान्ति एवं शक्ति की अनुभूति इस मंत्र से प्रसन्न हो अपनी कृपादृष्टि बरसाने वाली देवी चंडी के दर्शनों से होती है. आदिशक्ति जगदम्बा के चंडिका स्वरुप को समर्पित यह मंत्र मनुष्य को एक ओर हर प्रकार के भयों, नकारात्मक उर्जाओं एवं कष्टों से मुक्ति दिलाता है, तो दूसरी ओर इन्ही माँ शक्ति के चंडी स्वरुप दर्शन से मनुष्य को विशिष्ट शान्ति, एवं प्रसन्नता का अनुभव होता है. माँ शक्ति के दिव्य स्वरुप इस संसार के कण कण में विराजमान हैं. किन्तु आज हम आपको दर्शन करवाने जा रहे हैं आदि काल से स्थित उस स्थान की जहाँ माँ शुम्भ निशुम्भ दैत्यों का संघार कर, जगत कल्याण के लिए स्वयं विराजमान हों गयीं. हमारे कार्यक्रम से जुड़े आप सभी भक्तों का तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. तो आइये आज हम दर्शन करते हैं मोक्ष्दायनी सप्तपुरियों में से एक हरिद्वार में स्थित चंडी देवी मंदिर के. मंदिर के बारे में सिद्धपीठ व शक्ति पीठ की भूमि कहे जाने वाले तथा उत्तराखंड राज्य की धर्मनगरी हरिद्वार में मां दुर्गा के अनेक मंदिर हैं। इनमें से एक माता चंडी को समर्पित चंडी देवी मंदिर हिमालय की दक्षिणी पर्वत श्रंखला की पहाड़ियों के पूर्वी शिखर पर स्थित नील पर्वत पर स्थित है | यह मंदिर एक प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर है। जो कि हरिद्वार में स्थित तीन सिद्ध पीठो चंडी देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर, तथा मायादेवी मंदिर में से एक है. जहाँ से कोई भी भक्त खाली हाँथ नहीं जाता. इसके साथ ही चंडी देवी मंदिर हरिद्वार में स्थित पंच तीर्थों में से एक है। इस मंदिर को “नील पर्वत” तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है | आदि अनादि काल से स्थित माता चंडी का यह मंदिर भक्तों की आस्था का विशेष केंद्र है जहाँ भक्तजन मनोकामना की सिद्धि के लिए माता के दरबार में चुनरी बांधते हैं तथा मनोकामना पूर्ण होने पर चुनरी खोलकर माँ को हलवा पूरी का भोग लगाते हैं. भक्तों चंडी देवी मंदिर उंचाई पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 4 की चढ़ाई करनी होती है. वैसे यहाँ रोपवे की सुविधा भी है जिसके द्वारा भी आप टिकट लेकर मंदिर पहुँच सकते हैं. मंदिर का इतिहास: भक्तों, हरिद्वार में पतित पावनी गंगा जी से सटे नील पर्वत पर स्थित मां चंडी का दरबार आदि काल से है। जब शुंभ, निशुंभ और महिषासुर जैसे दैत्यों ने इस धरती पर प्रलय मचाया हुआ था. चंडी देवी के इस मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार – एक समय दानव शुम्भ और निशुम्भ ने स्वर्ग के देवराज इंद्र के राज्य पर अपना आधिपत्य जमा लिया था और देवताओं को स्वर्ग से निष्काषित कर दिया | फिर देवताओं की कठोर प्रार्थना पर माता पार्वती ने देवी चंडी रूद्र किन्तु अति सुंदर रूप धारण किया. देवी के सौन्दर्य के वशीभूत हो दैत्य ने शुम्भ ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा जिसके देवी के द्वारा अस्वीकारने पर शुम्भ निशुम्भ ने अपने दैत्यों चंड और मुंड को देवी को मारने के लिए भेजा. जिनका देवी चंडी के क्रोध से स्वरुप माँ चामुंडा ने वध कर दिया. इसके पश्चात शुम्भ और निशुम्भ दोनों दैत्यों ने ही देवी चंडिका को मारने की कोशिश की, जिसके फलस्वरूप माँ चंडिका ने इसी नील गिरी पर्वत के शिखर पर रौद्र स्वरुप स्तम्भ रूप में प्रकट होकर उन दोनों राक्षसों का संघार कर दिया. उनका संघार करने के बाद माता चंडिका वहीँ समीप ही मंगल रूप में कुछ समय विश्राम करने बाद माँ अंतर्ध्यान हो गयीं. इस तरह से मंदिर के गर्भग्रह में आज भी माँ स्वयंभू स्तम्भ एवं मंगल रूप प्रतिमा के रूप में विराजमान हैं. तथा पहाड़ पर स्थित दो चोटियों को शुम्भ और निशुम्भ कहा जाता है | मंदिर के गर्भग्रह में स्थित चंडी देवी की मंगल रूप प्रतिमा की पूजा एवं स्थापना 8वी शताब्दी में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने की थी, जो कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े पुजारियों में से एक है| कालांतर चंडी देवी मंदिर का जीर्णोद्धार 1929 में कश्मीर के राजा सुचेत सिंह ने अपने शासनकाल के समय करवाया था. मंदिर परिसर: रोपवे या चढ़ाई करके मंदिर परिसर में पहुँचते ही यहाँ बहुत ही पूजा सामग्री की दुकाने हैं... जहाँ से श्रद्धालु माँ को अर्पित करने के लिए फूल माला, नारियल, चुनरी आदि लेकर मंदिर में गर्भग्रह की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ते हैं. यहाँ भीड़ अधिक होने के कारण लोहे की रेलिंग लगी है ताकि श्रधालुओं पंक्ति में गर्भग्रह की ओर बढे. जय माता दी के जयकारे के साथ ओर्जवान भक्तजन गर्भग्रह की ओर बढ़ते जाते हैं. मंदिर का गर्भग्रह: मंदिर के गर्भग्रह में माँ चंडी रौद्र रुपी स्वयंभू स्तम्भ एवं मंगल रुपी प्रतिमा के रूप में विराजमान हैं. जिनके दर्शन कर भक्त भाव विभोर हो उठते हैं. तथा माता के दर्शन कर अपनी सभी मनोकामनाओं की सिद्धि की माँ से कामना करते हैं. भक्तों, मां चंडी देवी मंदिर में मां की आराधना भक्तों को अकाल मृत्यु, रोग नाश, शत्रु भय आदि कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाली तथा सभी मनोकांक्षाओं को पूर्ण कर अष्ट सिद्धि प्रदान करने वाली है। श्रेय: लेखक - याचना अवस्थी Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. #devotional #hinduism #chandidevimandir #matamandir #uttrakhand #tilak #travel #vlogs