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मुंडनेश्वर महादेव का इतिहास। मुंडनेश्वर महादेव को खैरालिंग क्यों कहते हैं? मंदिर में ध्वजा क्यों चढ़ाई जाती है?मुंडनेश्वर महादेव की दूरी जनपद मुख्यालय पौड़ी से लगभग 30 किमी है,यहां आने के लिए कोटद्वार से सतपुली बिलखेत और ऋषिकेश से देवप्रयाग ब्यासघाट बिलखेत होते हुए पहुंच सकते हैं। मुंडनेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी जनपद के कल्जीखाल ब्लॉक की असवाल पट्टी के मुण्डनेश्वर नामक स्थान में स्थापित है,इस मंदिर की स्थापना सोलहवीं शताब्दी में की गई,मंदिर में खैर के रंग का लिंग स्थापित है इसलिए इसे खैरालिंग कहते हैं,पहले गढ़वाल के लोग नमक गुड़,शीरा कोटद्वार दुगड्डा से लाते थे सामान को ढाकर और सामान लाने वाले को ढाकरी कहते थे,नमक या अनाज के भार को भारी कहते हैं,कहा जाता है कि यह लिंग ढाकरी मांडू थैरवाल के नमक के भारे में यहां पहुंचा,मांडू थैरवाल अपने नमक के भार को लेकर दुगड्डा से लेकर सकनोली से ऊपर पहुंचकर थोड़ी देर विश्राम करने लगे और जब जाने लगे तो नमक की भारी को हिला भी नहीं पाए,मांडू थैरवाल अपनी भारी को वहीं छोड़कर घर चले गए,रात को उनको सपने में आकर भगवान ने आज्ञा दी कि मैं नमक के भारे में हूं ऊंचे स्थान पर मेरी स्थापना करो,सुबह मांडू थैरवाल ने शिवलिंग स्थापित करने के लिए इस स्थान का चयन किया और फिर नमक के भारे में देखा तो सचमुच उसमें एक शिवलिंग था,उसके बाद नमक की भारी और शिवलिंग फूल की तरह हल्का महसूस होने लगा,तब मुंडनेश्वर महादेव की स्थापना हुई, असवालस्यूं के थोकदार भंगो असवाल ने मंदिर का निर्माण करवाया,मुंडनेश्वर से बिनसर,एकेश्वर,ताड़केश्वर और भैरोंगढ़ी चारों मंदिर स्पष्ट दिखाई देते हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग मुंडनेश्वर मंदिर में ध्वजा चढ़ाते हैं। 2023 में ग्राम मिरचोडा, रिठोली और थैर गांवों की ध्वजा मंदिर में चढ़ाई गई। यह मेला उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में से एक है,प्रसिद्ध लेखक राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक गढ़वाल हिमालय में लिखा है कि औद्योगिक मेला गोचर के बाद यह मेला गढ़वाल का सबसे बड़ा मेला है,इस मंदिर में काले पत्थर की काली माता की मूर्ति स्थापित है जो खंडित स्थिति में है,यहां पहले पशुबलि होती थी,पहले पानी की कमी थी अब पानी है लेकिन भीड़ होने पर दिक्कत हो जाती है,मंदिर के चारों तरफ कम से कम एक एक नल होना चाहिए इसके अलावा टंकियां पानी से भरकर रखी जा सकती हैं,मेले के दिन भी पानी का पाइप टूटा हुआ था,जल संस्थान को इस ओर ध्यान देना चाहिए। मंदिर तक सड़क है लेकिन सड़क की स्थिति ठीक नहीं है। मुंडनेश्वर महादेव का दूसरा मंदिर कठूड़ बड़कोट गांव में है,यहां पर भी इसी दिन मेला लगता हैं।