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कंस के आदेश पर सैनिक वसुदेव को उसके कक्ष में लेकर आता है। कंस वसुदेव पर आरोप लगाते हुए कहता है कि उसने झूठ बोलकर आठवें पुत्र की जगह कन्या को सौंपकर धोखा दिया है, दो आकाशवाणियों में एक ही सत्य हो सकती है और वह जानना चाहता है कि कौन-सी सच्ची है। वसुदेव शास्त्रों के आधार पर कंस को समझाने का प्रयास करते हैं कि उन्होंने कोई छल नहीं किया, किंतु कंस वसुदेव के उत्तरों से संतुष्ट नहीं होता है और वसुदेव को पुनः कारागार में डाल देता है। कंस अष्टमी की रात का सच जानने के लिए देवकी के पास जाता है, लेकिन उसके उत्तरों से भी कंस को कोई संतुष्टि नहीं मिलती है तो उसे भी कारागार में डलवा देता है। कारागार में देवकी बाल कृष्ण की सुरक्षा को लेकर चिंतित देख वसुदेव उसे सच्चाई से अवगत कराते हुए बताते हैं कि कृष्ण ही उनका अष्टम पुत्र है, जिसे वह गोकुल में यशोदा को सौंप आए थे। यह सुनकर देवकी भावविह्वल होकर मूर्छित हो जाती है। इधर सच जानने को आतुर कंस आचार्य गर्ग को बुलाकर उनसे गोकुल में किसी बालक के नामकरण की पुष्टि चाहता है। लेकिन आचार्य गर्ग को स्वयं को इस प्रकार बुलवाना अच्छा नहीं लगता है और वह स्पष्ट करते हैं कि वे राजा के सेवक नहीं, मार्गदर्शक हैं। कंस क्रोधित होकर आचार्य गर्ग को मारने के लिए तलवार उठा लेता है, परन्तु महामंत्री कंस को रोक कर ब्रह्मदण्ड की महिमा बताते हुए वशिष्ठ और विश्वामित्र की कथा सुनाकर समझाते हैं कि सिद्ध मुनियों से टकराना हानिकारक हो सकता है। कंस पर इन बातों का प्रभाव नहीं पड़ता और वह अपने मित्र बाणासुर को सहायता हेतु बुलाता है। बाणासुर उसे सलाह देता है कि कल्पनाओं में भटकने के बजाय बालक कृष्ण को लक्ष्य बनाकर योजना बनाए। वह तृणावर्त नामक दैत्य को गोकुल भेजता है, जो वहाँ पर बवंडर के रूप में उत्पात मचाते हुए बाल कृष्ण को उड़ाकर ले उड़ता है। लेकिन बालक कृष्ण अपने वजन से उसे थका देते हैं और अंत में उसका वध कर देते हैं। तृणावर्त के मारे जाने पर कंस बाणासुर से अगली रणनीति पूछता है। बाणासुर उसे प्रतीक्षास्त्र का प्रयोग करने अर्थात शांत रहकर सही समय की प्रतीक्षा करने की सलाह देता है और मनोरंजन हेतु अपने राज्य आमंत्रित करता है। सम्पूर्ण जगत में भगवान विष्णु के आठवें अवतार एवं सोलह कलाओं के स्वामी भगवान श्री कृष्ण काजीवन धर्म, भक्ति, प्रेम, और नीति का अद्भुत संगम है। वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में कारागार में जन्म लेकर गोकुल की गलियों में यशोदा और नंदबाबा के यहाँ पलने वाले, अपनी लीलाओं, जैसे पूतना वध, माखन चोरी, राधा के संग प्रेम, गोपियों के साथ रासलीला और कालिया नाग के दमन के लिए प्रसिद्ध श्री कृष्ण ने युवावस्था में मथुरा कंस का वध करके जनमानस को उसके अत्याचार से मुक्त कराया एवं स्वयं के लिए द्वारका नगरी स्थापना भी की। उनका जीवन केवल लीलाओं तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज को धर्म और कर्म का गूढ़ संदेश देने के लिए महाभारत के युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया और अर्जुन के सारथी बनकर उसे "श्रीमद्भगवद्गीता" का उपदेश दिया, जो आज भी जीवन की समस्याओं का समाधान बताने वाला महान ग्रंथ माना जाता है। श्री कृष्ण का जीवन प्रेम, त्याग, और नीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आपका प्रिय चैनल "तिलक" श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ा यह विशेष संस्करण "श्री कृष्ण जीवनी" आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाओं का संकलन किया गया है। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिए और तिलक से जुड़े रहिए। #tilak #krishna #shreekrishna #shreekrishnajeevani #krishnakatha