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नंदराय के कुलगुरु शांडिल्य नंदराय को अपने आश्रम में बुलाकर उन्हें सुझाव देते हैं कि बालकों का नामकरण यादवों के कुलगुरु ऋषि गर्ग द्वारा गुप्त रूप से किया जाना चाहिए। वही दूसरी ओर मथुरा में ऋषि गर्ग वसुदेव और देवकी को बताते हैं कि वे स्वयं गोकुल जाकर आचार्य शांडिल्य द्वारा संपन्न किए जा रहे यज्ञ में उनके पुत्र का नामकरण संस्कार कर देंगे। देवकी भावुक होकर ऋषि गर्ग से अपने आशीर्वाद स्वरूप दो झबले (शिशु वस्त्र) रोहिणी तक पहुँचाने का आग्रह करती हैं, जिसे वह स्वीकार कर लेते है। जब कंस को उसके महामंत्री एवं गुप्तचरों के माध्यम से यह जानकारी मिलती है कि ऋषि गर्ग गोकुल पहुँच चुके हैं, तो कुछ मंत्री इस घटना को संदिग्ध बताते हुए कहते हैं कि यदि नंदराय का पुत्र ही देवकी का आठवाँ पुत्र है, तो उसका नामकरण भी ऋषि गर्ग ही करेंगे। इसी संदेह को पुष्ट करने हेतु कंस दो गुप्तचरों को साधु वेश में शांडिल्य आश्रम की ओर भेजता है। गोकुल के आश्रम में ऋषि गर्ग शांडिल्य से अपनी पीड़ा साझा करते हैं कि उन्हें अपने प्रभु का नामकरण चोरी-छिपे करना पड़ रहा है। आश्रम के गौशाले में नंदराय, यशोदा और रोहिणी के साथ आए बालकों को देखते ही ऋषि गर्ग उनकी दिव्यता से मोहित हो जाते हैं। रोहिणी के पुत्र में शेषनाग की छवि देख ऋषि गर्ग कहते हैं कि उसके अनंत गुणों के कारण उसका नाम राम, और अत्यधिक बल के कारण बलराम होगा। यशोदा के पुत्र में उन्हें राधिकापति भगवान श्री कृष्ण की झलक मिलती है, इसलिए वह उसका नाम कृष्ण रखते हैं। हरि के मानव अवतार का नामकरण संस्कार होने पर देवलोक मंगल गीत गाए जाते हैं। इधर कंस को गुप्तचरों से सूचना मिलती है कि बालक का नाम कृष्ण रखा गया है, लेकिन किसने नामकरण किया, यह वे स्पष्ट नहीं कर पाते। चाणूर कंस से कहता है कि नंदराय द्वारा गुप्त रूप से नामकरण कराना संदेहास्पद है। मंत्रीगण इस बात से सहमत होते हैं कि यह वही आठवाँ पुत्र हो सकता है। कंस अब सत्य जानने के लिए सैनिक से वसुदेव को बुलवाते है, लेकिन वसुदेव के महल नहीं मिलने पर उसकी वहीं प्रतीक्षा करने लगते हैं। इधर ऋषि गर्ग वसुदेव को कृष्ण जन्म के रहस्य की स्मृति पुनः देते हैं, जिससे वसुदेव को संपूर्ण घटनाक्रम याद आ जाता है। ऋषि गर्ग से वसुदेव से वचन लेते हैं कि वह इस रहस्य को किसी से न कहें। वसुदेव के महल वापस लौटने पर सैनिक उन्हें पकड़कर कंस के पास ले जाते हैं। कंस उन पर आरोप लगाता है कि उन्होंने आठवें पुत्र की जगह कन्या देकर धोखा किया है। वसुदेव शास्त्रों का उदाहरण देते हुए उत्तर में कहते हैं कि उन्होंने कभी असत्य नहीं कहा। लेकिन वसुदेव के उत्तरों कंस संतुष्ट नहीं होता और उसे कारागार में डलवा देता है। कंस अपनी शंका के निवारण के लिए स्वयं देवकी से पूछताछ करने जाता है और उससे प्रश्न करता है कि क्या नंद और यशोदा का पुत्र ही उसका आठवाँ बालक है? देवकी के उत्तरों से संतुष्ट न होने पर कंस धमकी देते पूछता है कि उसे पुत्र प्यारा है या पति। देवकी कंस से दया की भीख माँगते हुए कंस के पैर पकड़ लेती है, लेकिन अहंकार में चूर कंस को दया नहीं आती है और वह देवकी को भी कारागार में डलवा देता है। सम्पूर्ण जगत में भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में विख्यात एवं सोलह कलाओं के स्वामी भगवान श्री कृष्ण का जीवन धर्म, भक्ति, प्रेम, और नीति का अद्भुत संगम है। वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में कारागार में जन्म लेकर गोकुल की गलियों में यशोदा और नंदबाबा के यहाँ पलने वाले, अपनी लीलाओं जैसे पूतना वध, माखन चोरी, राधा के संग प्रेम, गोपियों के साथ रासलीला और कालिया नाग के दमन के लिए प्रसिद्ध भगवान श्री कृष्ण ने युवावस्था में मथुरा कंस का वध करके जनमानस को उसके अत्याचार से मुक्त कराया एवं स्वयं के लिए द्वारका नगरी स्थापना भी की। उनका जीवन केवल लीलाओं तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज को धर्म और कर्म का गूढ़ संदेश देने के लिए महाभारत के युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया और अर्जुन के सारथी बनकर उसे "श्रीमद्भगवद्गीता" का उपदेश दिया, जो आज भी जीवन की समस्याओं का समाधान बताने वाला महान ग्रंथ माना जाता है। श्री कृष्ण का जीवन प्रेम, त्याग, और नीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आपका प्रिय चैनल "तिलक" श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ा यह विशेष संस्करण "श्री कृष्ण जीवनी" आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाओं का संकलन किया गया है। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिए और तिलक से जुड़े रहिए। #tilak #krishna #shreekrishna #shreekrishnajeevani #krishnakatha