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Lyrics: [Chorus] जय जय नीलकण्ठ शङ्कर। क्षमस्व मे रोगं शमय। शिव शिव पाहि पाहि हर। [Verse 1] भैरवभावैः प्रभो गीयसे। प्रणवनादैर्हृदि राजसि। तमसः पाशं क्षणाद् भिन्दसि। [Verse 2] शीतलदृष्ट्या मनसां रोगं शमयसि। हृत्तापमुग्रं क्षणेन दहसि। करुणासिन्धो क्षमस्व नः। [Verse 3] संहारकालेऽपि पालयसि जगत्। उग्ररूपे दयामृतैः सिञ्चसि। भवभीतानां शरणं भवान्। [Verse 4] गङ्गाधरस्त्वं शशिशेखरः। त्रिलोचनदीप्तिविभूषितः। पावनं पवित्रं वितर नः। [Verse 5] नटेश्वर नृत्यविलासभरित। मृदङ्गनिनादेन चेतांसि चलयसि। दोषराशिरपि विलीयते। [Verse 6] नीलकण्ठ! विषं जगदुद्धृत्य। स्वकण्ठे धृत्वा शिवोऽभवः। तथास्मद्दुःखमपि त्वं पिब। [Verse 7] आशुतोष प्रसीद प्रसीद। अल्पार्चनेऽपि वरं प्रयच्छ। क्षमां विधेहि भवबान्धव। [Verse 8] पशुपते पाहि पशूनिवास्मान्। मोहजालेभ्यः परित्राय नः। मोक्षपथं देहि निर्वृतिमयम्। [Verse 9] हृद्ग्रहशूलान् अपकृन्तसि। मनसां विकल्पान् शमयसि। भववैद्य त्वं भवपाशच्छेत्ता। [Verse 10] अपराधकोट्योऽपि सङ्ख्यया। यदि सन्ति तव दृष्टिलहरीभिः। विलीयन्ते मेघा इवादित्ये। [Verse 11] त्रिनेत्रजोऽग्निर्मलीमसं दहतु। अन्तःकरणे दोषपङ्कम्। रक्ष रक्ष वृषभध्वज। [Verse 12] गीतैर्निनादैरन्तःकरणे। भृङ्गीव भ्राम्यामः तव मन्दिरे। नामपरिवर्तैः उच्चैर्विलासैः। [Verse 13] क्षमा तव चन्दनगन्धवती। शीतीकरोति समीरवद्। तवाङ्घ्रिसेवा निवर्तयति दुःखम्। [Verse 14] रुद्रः किन्तु करुणामृदुः। उग्रः किन्तु हृदि शान्तः। द्वन्द्वनाशी शङ्करः श्रेष्ठः। [Verse 15] अनुग्रहधाराः अवर्षय नः। गङ्गेव पावनी पावय। शमनं देहि सर्वरोगाणाम्। [Verse 16] क्षमस्व क्षमस्व भवपापजालम्। परिवर्तय तत् शिवज्योतिषि। जायतात् नो नूतना चेतना। [Verse 17] वाक्पातकैः कृतैरपकारैः। दह्यमानान् नः प्रसादय। सौहार्दबीजं पुनरुद्भवतु। [Verse 18] कैलासशिखरे विराजसि शान्तः। सिंहासनशोभां वहसि महेश। आशीषां निधानं भव प्रभो। [Verse 19] मृत्युं जयसि मृड मृत्युञ्जय। भयस्य तीव्रस्य उद्धारकारिन्। प्राणेषु दीप्तिं पुनर्दीपय। [Verse 20] गाढभक्तिं वहदन्तर्हृदये। शरणागतं मां नित्यं पाहि। पापानि शुद्ध्यन्तु तवाङ्घ्रिरेणुना। इति शिव-आरत्याः DISCLAIMER: This devotional composition is created using AI-generated lyrics and vocals, intended purely for spiritual inspiration. It is not sourced from scriptures, and minor pronunciation variations may occur due to AI rendering. With heartfelt reverence, this offering is humbly dedicated to the deity and to all seekers of devotion.