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ज्ञान प्राप्ती के बाद का गौतम बुद्ध का पहिला उपदेश गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने पहले प्रवचन को धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त (धर्मचक्र प्रवर्तन सूत्र) के नाम से जाना जाता है। यह प्रवचन उन्होंने सारनाथ (ऋषिपत्तन या मृगदाव) में अपने पांच पूर्व संन्यासी साथियों (पंचवर्गीय भिक्षुओं) को दिया था। यह घटना बुद्ध के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि इसी के साथ उन्होंने धर्मचक्र को गति दी, यानी बौद्ध धर्म के प्रचार की शुरुआत की। यह प्रवचन बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को स्थापित करता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं: प्रवचन का स्थान और समय • स्थान: सारनाथ, जो वाराणसी के पास स्थित है। • समय: बुद्ध ने बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे 49 दिनों तक ध्यान और चिंतन के बाद यह प्रवचन दिया। यह आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। प्रवचन का मुख्य विषय बुद्ध ने अपने पहले प्रवचन में चार आर्य सत्य (चत्वारि आर्यसत्यानि) और मध्यम मार्ग (मझ्झिम निकाय) की शिक्षा दी। ये बौद्ध धर्म के आधारभूत सिद्धांत हैं। इसे विस्तार से देखते हैं: 1. मध्यम मार्ग (मध्यमा प्रतिपदा) बुद्ध ने सबसे पहले बताया कि जीवन में संतुलन जरूरी है। उन्होंने दो चरमपंथों को अस्वीकार किया: • काम सुखाल्लिकानुयोग: अत्यधिक भोग-विलास और सांसारिक सुखों में लिप्त रहना। • आत्मक्लेशानुयोग: कठोर तपस्या और शरीर को कष्ट देना। उन्होंने कहा कि इन दोनों extremes से बचकर मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए, जो निर्वाण (मोक्ष) की ओर ले जाता है। यह मार्ग अष्टांगिक मार्ग (आठ गुना मार्ग) पर आधारित है, जिसे बाद में विस्तार से बताया गया। 2. चार आर्य सत्य बुद्ध ने जीवन की सच्चाइयों को चार बिंदुओं में समझाया: • दुक्ख (दुख): जीवन में दुख है। जन्म, वृद्धावस्था, बीमारी, मृत्यु, प्रिय से वियोग, अप्रिय से संयोग—ये सभी दुख के रूप हैं। • दुक्ख समुदाय (दुख का कारण): दुख का कारण तृष्णा (लालसा) है। यह सांसारिक सुखों, भोगों और अज्ञानता से उत्पन्न होती है। • दुक्ख निरोध (दुख का निवारण): दुख से मुक्ति संभव है। तृष्णा को समाप्त करके निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है। • दुक्ख निरोध गामिनी पटिपदा (दुख निवारण का मार्ग): दुख से मुक्ति का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है। 3. अष्टांगिक मार्ग बुद्ध ने मध्यम मार्ग को और स्पष्ट करने के लिए अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या की। यह आठ सिद्धांत हैं जो नैतिकता, ध्यान और प्रज्ञा पर आधारित हैं: • सम्मा दिट्ठि (सम्यक दृष्टि): सही समझ, चार आर्य सत्यों को जानना। • सम्मा संकप्पो (सम्यक संकल्प): सही इरादा, वैराग्य और करुणा का संकल्प। • सम्मा वाचा (सम्यक वाणी): सत्य, प्रिय और लाभकारी वाणी। • सम्मा कम्मन्तो (सम्यक कर्म): सही कार्य, हिंसा, चोरी और अनैतिकता से बचना। • सम्मा आजीवो (सम्यक आजीविका): सही आजीविका, जो दूसरों को हानि न पहुंचाए। • सम्मा वायामो (सम्यक प्रयास): सही प्रयास, कुशल विचारों को बढ़ाना और अकुशल को रोकना। • सम्मा सति (सम्यक स्मृति): सही सजगता, वर्तमान में जागरूक रहना। • सम्मा समाधि (सम्यक समाधि): सही एकाग्रता, ध्यान के माध्यम से मन को शुद्ध करना। प्रवचन का प्रभाव • इस प्रवचन को सुनकर पांच भिक्षुओं में से सबसे पहले कौण्डिन्य को "धम्म की आंख" खुली, यानी उन्हें सत्य का बोध हुआ। वे बुद्ध के पहले शिष्य बने और अर्हतत्व प्राप्त किया। • इसके बाद बुद्ध ने अन्य चार भिक्षुओं को भी उपदेश दिया, और वे भी बौद्ध संघ में शामिल हो गए। • यह प्रवचन बौद्ध धर्म के प्रसार का प्रारंभिक बिंदु बना। प्रवचन का सार बुद्ध ने इस पहले प्रवचन में मानव जीवन की वास्तविकता (दुख), उसके कारण और उससे मुक्ति के मार्ग को सरल और तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया। उनका उपदेश व्यावहारिक था और यह सभी के लिए खुला था—चाहे वह किसी भी वर्ण, जाति या लिंग का हो। यह प्रवचन आज भी बौद्ध धर्म के मूल ग्रंथों में संरक्षित है और बौद्ध अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। क्या आप इसके किसी विशेष पहलू पर और जानकारी चाहेंगे?